अभ्यास योग एवं निर्वाण

गीता सूत्र – 6.15

युज्जन् एवं सदा आत्मानं योगी नियत – मानसः /

शांतिम् निर्वाण परमां मत् - संस्थाम् अधिगच्छति //

yujjan evam sada atmaanam yogi niyat – manasah /

shantim nirvan paramaam mat – sansthaam adhugachchhati //

इस सूत्र को स्वामी प्रभुपाद जी कुछ इस प्रकार से देखते हैं -----

इस प्रकार शरीर,मन तथा कर्म में निरंतर संयम का अभ्यास करते हुए संयमित मन वाले योगी को इस भौतिक अस्तित्व की समाप्ति पर भगवद्धाम की प्राप्ति होती है//

Dr . S . Radhakrishanan says -------

The Yogin of subdued mind , ever keeping himself thus hormonized , attains to peace , the supreme nirvana , which abides in Me .


इस सूत्र में निम्न बातें हैं -----

  • नियमित अभ्यास करना

  • तन,इन्द्रियों एवं मन को प्रभु केंद्रित रखना

  • परम शांति की प्राप्ति

  • निर्वाण की प्राप्ति

  • परम धाम की प्राप्ति

    अब देखते हैं इन बातों में क्या कोई आपसी सम्बन्ध दिखता है ?

    तन,इंद्रियों एवं मन को प्रभु केंद्रित रखनें वाला अभ्यास – योग में होता है जहां उसे परम शांति मिलती है जोनिर्वाण का द्वार हैऔर निर्वाण प्राप्त योगी परम धाम की यात्रा पर होता है जब वह पूर्ण होश में अपनें देह को छोड़ता है/ऐसे योगी का आत्मा निर्विकार मन के साथ पुनः देह नहीं खोजता,वह प्रभु का क्वांटा है और प्रभु में लीन हो जाता है और ऐसा योगी आवागमन से मुक्त हो जाता है//


======ओम्========


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