मन के प्रति होशमय रहो

गीता सूत्र –6.26


अभ्यास – योग

यतः यतः निश्चलति मनः चंचलम् अस्थिरम्

ततः ततः नियम्य एतत् आत्मनि एव बशम् नयेत्

स्वामी प्रभुपाद जी इस सूत्र को कुछ इस प्रकार से देखते हैं ------

मन अपनीं चंचलता तथा अस्थिरता के कारण जहां कहीं भी विचरण करता हो , मनुष्य को चाहिए कि उसे वहाँ से खींचे और अपनें बश में लाये //

Dr Sarvapalli Radhakrishanan has seen this sutra as under ----

Whatsoever makes the wavering and unsteady mind wander away let him restrain and bing it back to the control of the Self alone .

बुद्ध – महाबीर से J Krishnamurthy तक , शिव ध्यान सूत्रों से पतंजलि तक और आज के दर्शन शास्त्रियों के द्वारा जताए गए साधना विधियों का एक मात्र उद्देश्य है , मन को शांत करना और यह काम बहुत कठिन काम है / गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं , अनेक लोग मेरी तरफ चलते हैं , उनमें से कुछ की साधना सिद्ध भी हो जाती है और जितनों की साधनाएं सिद्ध होती हैं उनमें से एकाध ही मुझे तत्त्व से समझ पाता है / साधना करना सबके बश में है , साधना की सिद्धि प्राप्त करना कुछ के हाँथ में है और प्रभु मय होना कुछ अलग सी बात है और यह आयाम उनको मिलता है जो प्रभु से प्रभु में सब संसार को देखते हैं और जो कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखते हैं /

कुछ लोग कहते हैं , मन को अपनी अपनी तरफ खीचो और अपनें बश में करो , मन क्या कोई बस्तु है कि जब चाहा पकड़ लिया और जब चाहा उसे छोड़ दिया ; बुद्ध के अंदर वैराज्ञ की लहर जब दौडी तब उनकी उम्र थी 27 साल की और तब से 80 साल की उम्र तक लोगों को वह बताते रहे जो उनको दिखा लेकिन कितने देख पाए / आनंद बुद्ध से उम्र में बड़े थे और उनके ही परिवार के थे , बुद्ध के साथ सोते , बैठते और हर पल बुद्ध के साथ रहे लेकिन परम सत्य से दूर ही बनें रहे , और ज्ञान मिला तब जब बुद्ध देह छोड़ गए और परम हंस रामकृष्ण जी के साथ स्वामी विवेकानंद जी अंत तक रहे लेकिन उनको परम सत्य का बोध तब उया जब परम हंस जी देह छोड़ गए / कहना जितना आसान है यदि होना भी उतना ही आसान होता तो आज यह पृथ्वी बुद्ध मय हो गयी होती

लेकिन ------

Serenity of mind is the gateway of the Ultimate Supreme


=====ओम्======


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