क्या है विज्ञान और ज्ञान

गीता सूत्र – 6.8

ज्ञान - विज्ञान तृप्त आत्मा

कूटस्थो विजित – इन्द्रियः

युक्तः इति उच्यते योगी

सम लोष्ट्र अश्म कांचन: //

जिसकी इन्द्रियाँ उसके इशारे पर चलती हैं, वह ज्ञान – विज्ञान से परिपूर्ण समभाव – योगी होता है

A man with fully control over his senses , is a man having pure perceptions and he is a man of super wisdom . Such a man is said to be settled in Evenness – Yoga .

गीता के इस सूत्र में निम्न बातें हैं--------

इंद्रिय नियोजन

समभाव – योग

ज्ञान – विज्ञान से परिपूर्ण

गीता इन तीन तत्त्वों का समीकरण हमें दे दिया और बोला , अब आगे तेरे को अकेले यात्रा करनी है , तूं जिसे उचित समझे वैसे कर /

संसार माया से माया में है , माया तीन गुणों का एक माध्यम है जिसका कोई अंत नहीं और जो समयाधीन भी नहीं और जो हर पल बदलता रहता है / जहां बदलाव है वहाँ गति भी होगी हीअतः यह हर पल गनिमान भी है लेकिन इसकी गति ऎसी हैजैसे हमारे ह्रदय की धडकन / संसार में हमारे इंद्रियों को आकर्षित करनें केबिषय हैं ; विषय के प्रति उठा होश ही इंद्रिय नियोजन हैऔर इंद्रिय नियोजन के साथसमभाव की स्थितिमिलती हैंजहांविज्ञान के माध्यम से ज्ञान की प्राप्ति होती है / क्या है विज्ञान ? और क्या है ज्ञान ? विज्ञान वह है जो हमें इंद्रियों एवं मन से मिलता है संसार की सूचनाओं के सम्बन्ध में और जिसमे गुण तत्त्व भी आते हैं और ज्ञान है वह जिससे क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध होता है [ यहाँ देखें गीता सूत्र – 13.3] और आगे गीतासूत्र – 4.28 कहता है , योग की सिद्धि पर ज्ञान मिलता है / समभाव – योग योग नहीं है यह तो सभी योगों की सिद्धि का लक्षण है जहां साधक को सत्य दिखानें लगता है //


=========== ओम्----------------


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