गीता के116 सूत्र

अगला सूत्र –5.11

कायेन मनसा बुद्ध्या

केवलै:इन्द्रियौ:अपि

योगिनः कर्म कुर्वन्ति

संगम् त्यक्त्वा आत्म शुद्धते//


कर्म योगी अपने तन,मन एवं बुद्धि से जो भी करता है वह उसे और पवित्र बना

देता है//


Actions from body ,mind and intelligence performed by Karma – Yogin make him purer .


अब आप पिछले दस सूत्रों का सारांश देखें … ..

  • कर्म – योग भोग से योग की यात्रा है

  • आसक्ति रहित कर्म ही कर्म – योग है

  • आसक्ति रहित कर्म ज्ञान की जननी है

  • आसक्ति रहित कर्म समभाव की स्थिति में होता है

  • आसक्ति रहित कर्म से नैष्कर्म – सिद्धि मिलाती है

  • नैष्कर्म – सिद्धि ज्ञान – योग की परा निष्ठा है

  • आसक्ति रहित कर्म मुक्ति-पथ है


=====ओम=======


Comments

Popular posts from this blog

क्या सिद्ध योगी को खोजना पड़ता है ?

पराभक्ति एक माध्यम है

गीतामें स्वर्ग,यज्ञ, कर्म सम्बन्ध