गीता के116 ध्यान सूत्र


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गीता सूत्र18.49 , 18.50

सूत्र- 18.49

प्रभु कह रहे हैं ------

आसक्ति रहित कर्म नैष्कर्म्य – सिद्धि का द्वार खोलती है //

Action without attachment opens the door of the perfection of the Karma – Yoga .


सूत्र- 18.50

यहाँ प्रभु कह रहे हैं ------

नैष्कर्म्य – सिद्धि ज्ञान – योग कि परा निष्ठा है //

Perfection of Karma – Yoga takes into wisdom .


प्रभु अर्जुन के माध्यम से हम सब को बता रहे हैं कुछ ऎसी बात जो सभीं साधनाओं का सार है /

प्रभु कह रहे हैं कितना पढोगे शास्त्रों को ? , कितनी संगती करोगे सत पुरुषों की ? ,

कितनी भक्ति करोगे मंदिरों में ?

अब तो मैं वह मार्ग बता रहा हूँ जिसको खोजनें की जरुरत नहीं तुम उस मार्ग पर हो ही लेकिन

जिस मार्ग पर हो उसे भूल रहे हो , वही मार्ग तुमको मुझ तक पहुंचानें में सक्षम है /

प्रभु कह रहे हैं …....

जो तुमसे हो रहा है उसका तुम कर्ता नहीं द्रष्टा बन जाओ

जो तुमसे हो रहा है तुम उसे देखते रहो

जो तुमसे हो रहा है वह किस ऊर्जा से हो रहा है उसे देखो

जो तुम से हो रहा है उसके होने के पीछे क्या ----

  • कोई आसक्ति है ?

  • कोई कामना है ?

  • कोई अहंकार है ?

  • कोई मोह है ?

  • क्या कोई भय है ?

  • क्या कोई लोभ है ?

जिस दिन जो तुम से होगा उसमें ऊपर के तत्त्वों की ऊर्जा न होगी उस दिन तुम

उस कर्म से मुझ में पहुंचा जाओगे //


===== ओम =====



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