गीता मर्म - 45


गीता तत्त्व विज्ञान में अनमोल रतन

[क] गीता सूत्र - 4.38
साधना या योग का मार्ग कोई भी क्यों न हो , सब से ज्ञान मिलता है
जो प्रभु मय बना देता है ॥
ज्ञान का अर्थ वह नहीं जो हम - आप जानते हैं , वह तो मुर्दा ज्ञान है
जो किताबों से मिलता है ,
योग से गुजरनें से जो अनुभव होता है , वह ज्ञान है
और गीता कहता है [ गीता - 13.3 ]
जिस से क्षेत्र एवं क्षेत्रज्ञ का बोध हो , वह ज्ञान है ॥
[ख] गीता सूत्र - 6.3
योगारूढ़ योगी से कर्म स्वयं छूट जाते हैं ॥
[ग] गीता सूत्र - 6.2
योग - संन्यास एक हैं जो संकल्प रहित स्थिति में घटित होते हैं ॥

आप को छोटे - छोटे सूत्रों के माध्यम से वहाँ पहुँचानें का काम हो रहा है जहां जाना
तो सभी चाहते हैं लेकीन
कोई अपनें को बदलनें के लिए तैयार नहीं ॥
गीता वह औषधि है ------
जो धीरे - धीरे आप को ........
भोग से योग की ओर मोड़ता है
संसार के गुण सम्मोहन से परे पहुंचाता है
और आप को वह दिखाता है जो .....
आप के मनुष्य होनें का लक्ष्य है ॥

===== ॐ =======

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