गीता मर्म - 46

गीता तत्त्व विज्ञान के दो रत्न

गीता रत्न - 14.19

नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति ।
गुनेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं स: अधिगच्छति ॥

प्रभु कह रहे हैं :------

अपनें दैनिक कार्यों के होनें में जो गुणों को करता देखता है ,
वह मेरे दिव्या स्वभाव में होता है ॥

गीता रत्न - 14.23

उदासीनवदासीनो गुणैर्यो न विचाल्यते ।
गुणा वर्तान्त इत्येव य: अवतिष्ठति न इंगते ॥

गुणों से जो प्रभावित नहीं होता , जो गुणों को करता देखता है ,
वह गुनातीत योगी होता है ।

गीता के दो रत्न आप को यहाँ दिए गए हैं ,
आप इन दो रत्नों को अपनें जीवन में उतारनें का
अभ्यास करें , संभव है , एक दिन आप अपनें मूल रूप को देख सकें ॥

==== ओम ======

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