तंत्र और योग ---6

तंत्र कहता है -----
ब्रह्म की राह पर चलना है तो पहले काम को समझो और गीता कहता है ----
काम का रूपांतरण क्रोध है जिसका सम्मोहन मनुष्य को पाप -कर्म के लिए प्रेरित करता है ।
काम राजस गुण का प्रमुख तत्त्व है और राजस गुण प्रभु के मार्ग का सबसे बड़ा अवरोध है ।

गीता में काम के सम्बन्ध में 11 श्लोक हैं जिनकी साधना निर्विकार काम तक पहुंचा सकती है [गीता -7.11] और तब प्रभु के मार्ग पर चलना सुगम हो जाता है ।
काम से भागना संभव नहीं और काम को समझना भी आसान नहीं , इसको समझनें के लिए निरंतर अभ्यास करनें की आवश्यकता है जो ध्यान या योग से संभव है ।

तंत्र कहता है -------
तुम जैसे हो उसे स्वीकारो बिना किसी दबाव के और योग कहता है ------
तुम जैसे हो उसे जानों ।
भोग से हम पैदा होते हैं , भोग में हमारा जीवन आगे सरकता दिखता है और हम सारा जीवन भोग -साधनों की खोज में गुजारते हैं लेकिन हमें इस लम्बी दिखनें वाली जिन्दगी में मिलता क्या है ?...केवल तन्हाई और कुछ नहीं । क्यों हमारे माथे पर आया पसीना कभी सूखता नहीं ?
अष्टाबक्र कहते हैं -----
बासनाओं के बिषय को तुम बार-बार बदल कर स्वयं को महान ग्यानी होनें की बात सोचते हो लेकिन इस से होगा क्या ? , यदि ग्यानी बनना है तो वासनाओं की मूल को पकड़ो ।
गीता और तंत्र भी यही कहते हैं की वासनाओं की मूल को समझो और तेरी यह समझ तेरे को वासनामुक्त
कर देगी ।

तंत्र का मूल बिषय काम है और गीता का मूल बिषय - गुण हैं ।
काम को नक्कारा नहीं जा सकता और काम का प्रदर्शन करना भी खतरनाक है जैसा आज-कल हो रहा है

शक्ति से शिव तक पहुँचो [तंत्र ] या गुणों से निर्गुण तक पहुँचो [गीता]- दोनों बाते एक हैं , मात्र समझनें के मार्ग अलग- अलग हैं ।

====ॐ======

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