गंगा जल से समाधी तक --5

हमें पीछे चलनें का गहरा अभ्यास है , और पीछे चलनें वाला कभी औअल नहीं बन पाता, औअल बननें वाला पीछे नहीं चलता ।
लोगों की चाल देखते -देखते हम अपनी चाल कब और कैसे बदल लेते हैं , हमें पता तक नहीं चल पाता,लेकिन जो अपनी चाल को समझ कर चलता है उसकी यात्रा सरल एवं सुखद होती है ।
भारत के मानचित्र पर आप नदियों के मार्ग को देखें और यह देख कर आप हैरान हो उठेगें की उन नदियों में गंगा का मार्ग सीधा और कम उतार-चढाव वाला है , गंगा का मार्ग ऐसा है जैसे राज मार्ग हो जैसे कोई गणित का आदमी कागज़ पर बनाया हो , इसे कहते हैं सम-भाव का मार्ग जहां न खुशी हो और न गम हो , जो है वह उत्तम है ।
कैलाश , मानसरोवर , काशी, प्रयाग , गंगोत्री , चार धाम आदि की यात्रा किया हुआ ब्यक्ति जब आखिरी श्वाश भरनें अगता है तब उसके मुख में गंगा जल की दो बूंदे क्यों डाली जाती हैं ?
कैलाश से गंगा सागर तक की यात्रा से उस ब्यक्ति को क्या मिला , यदि मिला होता तो अंत समय में दो बूंदों की जरुरत क्यों पड़ती ? वह ब्यक्ति भागा तो खूब लेकिन लेकिन उसके भागनें के पीछे कुछ और था , उसनें एक बार नहीं अनेक बार गंगा में स्नान किया होगा , अनेक बार गंगा में यात्रा भी किया होगा लेकिन इन सब में वह होश मय नहीं था , यदि उसे होश होता तो अंत समय में दो बूद गंगा जल की जरुरत न पड़ती । आप जानते होंगे की कबीर जी सौ बर्ष तक काशी में रहे और अंत समय में यह कहते हुए काशी को छोड़ दिया ----ज्यों कविरा काशी मरे तो रामही कौन निहोर । कबीर जी काशी में रहते नहींथे , उनका निवास तो राम में था , वे काशी में काशी को पी रहे थे और जब पूरा पी लिया तब तृप्त मन से काशी को छोड़ दिया ।
तीर्थ , मंदिर , मूर्तियाँ तथा सत - पुरुष कुछ देते नहीं उनको पीना पड़ता है , वहाँ कुछ भी ताले में बंद नहीं है , आप को पूरी आजादी होती है , यह आप पर निर्भर है की वहाँ से आप क्या - क्या लेनेंमें सक्षम हैं गंगा जल से समाधि की यात्रा की कोई लम्बाई -चौड़ाई नहीं है , यह यात्रा पलांश से कई जन्मों तक का समय ले सकती है , यह निर्भर करता है यात्री के ऊपर । गंगा में स्नान करना उत्तम है , गंगा जल पीना उत्तमम है लेकिन यह सब करते समय वह ब्यक्ति किस भाव दशा में है , यह बात इनके परिणाम को निर्धारित करती है ।
गंगा जल चेतना को फैलाता है और चेतना का फैलाव राम की उर्जा को पकड़ता है ।
एक निश्चित बिद्युत उर्जा को बिभिन्न पदार्थों की सलाकों से गुजारिये , उनमें उस उर्जा की गति एक जैसी नहीं होगी , जो बिद्युत का अच्छा संतालक होगा उसमे यह उर्जा अधिक गति से प्रवाहित होगी , मनुष्य के अन्दर राम -उर्जा उन लोगों के अन्दर तीब्र गति से भरती है जो गंगा में स्नान करके अपनें को एक अच्छा संचालक बना लेते हैं और जो बेहोशी में दुबकी लेकर वापस आजाते हैं वे जैसे थे वैसे ही रह जाते हैं ।
भोग का गुरुत्वाकर्षण गहरा है यहाँ तीन गुणों की पकड़ है , इस से अप्रभावित रहना इतना आसान नहीं ।
गुणों की पकड़ चेतना को फैलानें नहीं देती और बिना चेतना फैलाव राम की खुशबू नही मिल पाती ॥
गंगा भारत भूमि पर समाधि का एक अवसर है , इस से एक नहीं अनेक लोग निर्वाण प्राप्त किया है और अब आप की बारी है , आप इस सुअवसर को योंही न जानें देना ।
गंगा आप को बुला रही है , आप को आज नहीं तो कल जाना ही होगा तो फिर देर किस बात की , उठिए और
चल दीजीये, लेकिन यात्रा राम धुन से परिपूर्ण होनी चाहिए ।
====ॐ=====

Comments

Popular posts from this blog

क्या सिद्ध योगी को खोजना पड़ता है ?

पराभक्ति एक माध्यम है

गीतामें स्वर्ग,यज्ञ, कर्म सम्बन्ध