अकेलापन-2

उजाले अपनी यादों के साथ रहनें दे ,
न जाने किस गली में जिन्दगी की साम आजाये ।
कबी साधारण ब्यक्ति नहीं है , उसे उजाले और अँधेरे दोनों का अनुभव है ।
कबी उजाले को छोड़ कर रहना नहीं चाहता लेकिन बेबश है , कुछ कर नहीं सकता ।
यह कबी किस स्थिति में रहा होगा इस बात को देखते हैं ---------
[क] कबी जबतक किसी के उजाले में था उसकी आँखें बंद रही होंगी और जब उजाले का श्रोत उस से दूर हो रहा है
तब उसे यह पता चल रहा है की इसके बाद क्या मिलेगा ?
[ख] कबी उजाले में रहते हुए अपनी आँखों को खोल कर रखा होगा लेकिन उसनें कभी सोचा भी न होगा की एक दिन उसे अँधेरे में रहना पड़ेगा ।

कबी स्मृती में रहना पसंद करता है और सांख्य- योग में स्मृति एक बंधन है ।
स्मृतिमें रहना अज्ञान है जो अँधेरा है और उजाला , ज्ञान है जो सत राह पर ले जाता है । इस कबी का क्या हुआ होगा ? - क्या वह अंधेरे में दम तोड़ गया होगा या अँधेरे का अनुभव उसे उजाले में पहुंचा दिया होगा ?
स्मृति किस की होती है ? जो संग-संग रहा हो , जो सुख-दुःख में कंधे से कन्धा मिलाकर चला हो और हर पल साथ दिया हो । स्मृति में कदम रखनें की घडी वह सोचता है की उसका साथी उस से एक कदम आगे था उसे हर कदम पर उसनें सही राह दिखाई थी और अब जब जुदाई को देख रहा है तब उसे ये सभी कारन अंधरे को दिखा रहे हैं ।

कबीकी ये पंक्तियाँ उसकी बुद्धि की उपज नहीं दिखती ,यह आवाज उसके दिल से निकल रही है ।
यह कबी अपनें क्षणिक अँधेरे में उजाले को खोज लिया होगा और समझ गया होगा की ------
अँधेरा उजाला दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं , मन मनुष्य को कभी कुछ दिखता है तो कभी कुछ ।
अँधेरा अगर न हो तो उजाले का अस्तित्व न होगा और यदि उजाला न हो तो अंधेरे को कौन समझेगा ?
अँधेरे को श्राप समझकर जीनें वाला कभी सुखी नहीं हो सकता और उजाले को प्रभु का प्रसाद समझकर
जीनें वाला कभी अँधेरे को नहीं देखता ।

====ॐ======

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