ध्यान से परमात्मा का बोध

गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं -----
ध्यानेन आत्मनि पश्यन्ति केचित् आत्मानं आत्मना
अन्ये साङ्ख्येन योगेन  कर्म योगेन च अपरे
गीता - 13.24 
" ध्यान , सांख्य , योग एवं कर्म योग से मुझे समझाना संभव  है 
लेकिन ....
ध्यान में जो उतरता है जब उसकी बुद्धि निर्विकार स्थिति में पहुंचती है तब वह अपनें ह्रदय में मुझे महशूस करता है / " 
ह्रदय का प्रभु से गहरा सम्बन्ध है  - यहाँ आप गीता के निम्न श्लोकों को भी देखें तो अच्छा रहेगा /
गीता श्लोक - 18.61 , 15.15 , 13.17 , 10.20 
गीता इन श्लोकों के माध्यम से कह रहा है - - - - - - -
आत्मा , प्रभु श्री कृष्ण , ईश्वर और ब्रह्म का निवास ह्रदय में है 
साधना में ह्रदय की इतनी मजबूत स्थित क्यों है ?
साधक के लिए ह्रदय वह इकाई है जहाँ से भाव उठते हैं और भाव वह माध्यम हैं जिनके सहयोग से भावातीत की स्थिति का बोध संभव है / भावातीत मात्र प्रभु हैं और कोई नहीं और आत्मा एवं ब्रह्म प्रभु के संबोधन स्वरुप हैं / भाव तब अवरोध का काम करनें लगते हैं जब कोई भाव में बहनें लगता है लेकिन भावों की किस्ती से परम पद की यात्रा संभव है / भावों के सहयोग से जो यात्रा कर रहे हैं उनको जब तीन गुणों के तत्त्वों के भावों का  बोध होता है तब सभीं भाव एकाएक लुप्त  हो उठते है  और सामनें जो झलक मिलती  है वह है परम प्रकाश
 की , जो स्वयं प्रभु है / 
=== ओम् =====

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