भक्त और भोगी

योग का मार्ग भोग से निकलता है 
योगी भोगी का शत्रु नहीं 
भोगी योगी का शत्रु हो सकता है 
योगी योगी की भाषा समझता है 
भोगी न योगी की भाषा समझता है न अपनी भाषा , वह संदेह में बसा होता है 
योगी योग सिद्धि तो एकांत में होती है और वह अपनी अनुभूति बाटनें बस्ती आता है 
योगी के शब्द और हमारे शब्द एक होते हैं लेकिन दोनों के भाव अलग - अलग होते हैं 
योगी अपनी अनुभूति ब्यक्त करता है और हम उसे अपनी तरह देखते हैं 
योगी पंथ का निर्माण नहीं करता , उसके पीछे चलनें वाले  बुद्धिजीवी उसके न रहनें के बाद पंथ ब्यापार प्रारम्भ करते हैं
जे . कृष्णमूर्ति जी कहते हैं - Truth is pathless journey और हम लोग आये दिन नये नये मार्ग बना रहे हैं
ज़रा अपनी चारों तरफ नज़र डालना , आप को साईं - सनी महाराज की झांकिया आये दिन देखनें को मिलेगीं , अब श्री राम , हनुमान , श्री कृष्ण से लोगों का लगाव घटता जा रहा है 
भोगी के दिल में योगी के लिए तबतक जगह है जबतक उसे यकीन है कि हो न हो अमुक योगी से हमें भोग प्राप्ति में कोई सहयोग मिल जाए और जिस दिन यह आस्था टूटेगी , योगियों का जीना मुश्किल हो उठेगा 
योगी और भोगी का एक समीकरण है , योगी भोगी को योगी बनाना चाहता है लेकिन भोगी योगी को भोग में घसीट  लाता है
आज शायद ही कोई ऐसा योगी मिले जिसमें भोग की लहर न दौड रही हो
अर्थात -----
योग की बोतल में भोग - रस का भरा हुआ होना जैसे योगी हैं 
भोग - वैराज्ञ के  मिलन बिंदु को योग कहते हैं ; योग संगम है जहाँ एक तरफ वैराज्ञ मय गंगा धारा दिखती है और दूसरी तरफ भोग मय यमना धारा का प्रवाह देखनें एवं सुननें को मिलता है
भोग जल प्रपात है और योग सागर 
==== ओम् ======


Comments

Popular posts from this blog

क्या सिद्ध योगी को खोजना पड़ता है ?

पराभक्ति एक माध्यम है

गीतामें स्वर्ग,यज्ञ, कर्म सम्बन्ध