गीता कहता है --- [ 3 ]

गीता कर्म - योग के तीन और श्लोक ......

[  1] - गीता सूत्र - 2.59 
इंद्रियों को बिषयों से अलग रहते समय होश मय रहो क्योंकि मन तो उन - उन बिषयों से जुड़ा  ही रहता है
[ 2 ] गीता सूत्र - 2.58 
कर्म - योगी अपनी इंद्रियों को ऐसे नियंत्रण में रखता है जैसे एक कछुआ अपनें अंगों पर रखता है
[ 3 ] गीता सूत्र - 3.34
ऐसा कोई बिषय नहीं जो राग - द्वेष की उर्जा न रखता हो

गीता कर्म - योग के सूत्रों में से तीन सूत्रों को आज यहाँ दिया गया है जिनको एक बात पुनः अपनी स्मृति में रखनें का प्रयाश करते हैं और आज हम जो भी करें गीता के इन तीन सूत्रों की छाया में ही करें और देखें कि गीता की ऊर्जा हमें कहाँ से कहाँ ले जा रही है ----
पंच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं और सबके अपनें - अपनें बिषय हैं / ज्ञान इंद्रियों का स्वभाव है अपनें - अपनें बिषयों में भ्रमण करना और जो बिषय जिस ज्ञान इंद्रिय को सम्मोहित करनें में सफल हो जाता है वह इंद्रिय मन को सम्मोहित करनें में कोई कसर नहीं छोडती / 
बिषय  इंद्रियों को  सम्मोहित करते हैं ....
इंद्रियां मन को .....
मन बुद्धि को .....
और बुद्धि प्रज्ञा को .....
और प्रज्ञा आत्मा को प्रभावित करनें की चेष्ठा करती है लकिन आत्मा अप्रभावित रहता है /
आप अपनें ज्ञान इंद्रियों की चालों पर अपनें ध्यान को केंद्रित रखें और देखें कि इन्द्रियाँ किस से और क्यों आकर्षित हो रही हैं ?
कर्म - योग का पहला समीकरण -----
इंद्रिय - बिषय संयोग को होश में देखो 
==== ओम् =======

Comments

Popular posts from this blog

क्या सिद्ध योगी को खोजना पड़ता है ?

पराभक्ति एक माध्यम है

गीतामें स्वर्ग,यज्ञ, कर्म सम्बन्ध