गीता संकेत - 55

कर्म फल की सोच और गीता

यहाँ हम गीता में उन श्लोकों से अपना परिचय बना रहे हैं जिनका सीधा सम्बन्ध है कर्म फल की

सोच/ऐसा कौन होगा जो कर्म करनें से पहले उसके फल के सम्बन्ध में न सोचता हो?संभवतः इस संसार में कोई हो या न हो लेकिन गीता का श्री कृष्ण सांख्य – योग राज जरुर इस तरह के योगी हैं/आइये देखते हैं प्रभु श्री कृष्ण के इस श्लोक को जिसका सम्बन्ध कर्म – कर्म फल की सोच से है/

गीता श्लोक –18.2

काम्यानां कर्मणाम् न्यासम् संन्यासम् कबयः विदुः

सर्वकर्मफलत्यागं प्राहु : त्यागं विचक्षणा :

पंडितजन काम्य कर्मों के त्याग को संन्यास समझते हैं एवं अन्य विचार कुशल अनुभव युक्त ब्यक्ति सभीं कर्मों के फल के त्याग को त्याग कहते हैं//

काम्य कर्म क्या हैं ? काम्य शब्द काम से है और काम को सभी समझते हैं / गीता में अर्जुन का एक प्रश्न है [ गीता श्लोक – 3.36 ] - अर्जुन जानना चाहते हैं -----

मनुष्य न चाहते हुए भी पाप कर्म क्यों करता है?और उत्तर के रूप में प्रभु कहते हैं

[गीता श्लोक –3.37 ] ------

काम का सम्मोहन मनुष्य को हठात् पाप करवाता है/

फ्राइड कहते हैं , मनुष्य जो भी कुछ करता है उसका सम्बन्ध काम से होता है और गीता में प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं कि मनुष्य काम के सम्मोहन में आकार जो कुछ भी करता है वह पाप – कर्म होता

है / फ्रायड के पास एक मार्ग है कर्म करनें का और प्रभु श्री कृष्ण दो मार्ग दिखा रहे हैं /

प्रभु कहते हैं गीता श्लोक –16.21 ] ------

काम , क्रोध एवं लोभ तीन मार्ग हैं नरक पहुंचनें के और ये तीनों तत्त्व हैं राजस गुण के / प्रभु गीता में यह भी कहते हैं [ गीता श्लोक – 3.37 ] ---- काम एषः क्रोध एषः रजोगुणसमुद्भवः अर्थात काम का रूपान्तर ही क्रोध है और काम राजस गुण का मूल तत्त्व है / फ्रायड जो बीसवीं शताब्दी के महान मनोवैज्ञानिक हैं उनकी नजर में काम ऊर्जा का परिणाम है कर्म और प्रभु श्री कृष्ण कर्म के सम्बन्ध में कहते हैं - भूतभावः उद्भव करः विसर्गः इति कर्मः [ गीता - 8.3 ] अर्थात वह ऊर्जा जो भूतों में भाव उत्पन्न करे उसके त्याग का नाम है कर्म / भाव उत्पन्न होते हैं प्रकृति के तीन गुणों से , तीन गुण हैं प्रभु की माया से और भावातीत की स्थिति है स्वयं प्रभु की अर्थात ------

कर्म वह है जिसके करनें से भावातीत की स्थिति की अनुभूति होती हो अर्थात वह कृत्य को प्रभु से मिलाए वह कर्म होता है और बाक़ी सब अकर्म हैं/

=====ओम्======



Comments

Popular posts from this blog

क्या सिद्ध योगी को खोजना पड़ता है ?

पराभक्ति एक माध्यम है

गीतामें स्वर्ग,यज्ञ, कर्म सम्बन्ध