गीता संकेत - 50 मोह


श्लोक –4.36

अपि चेत् असि पापेभ्य:सर्वेभ्यः पापकृतम: /

सर्वं ज्ञानप्लवेन एव बृजिनं संतरिष्यसि//

यदि तूं पापियों में बी सबसे उपर की श्रेणी में है फिरभी ज्ञान नौका द्वारा निःसंदेह पाप समुद्र से भलीभाति तर जाएगा /

अर्थात …..

पाप का समापन ज्ञान के उदय होनें से होता है

Austerity of wisdom takes away the energy which compels one to commit sins .

गीता श्लोक –4.38

न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रं इह विद्यते

तत् स्वयं योगसंसिद्ध : कालेन आत्मनि विन्दति

योग सिद्धि का फल है ज्ञान जो स्वतः मिलता है

Perfection of Yoga is wisdom which is not an act it is the result of meditation .

गीता श्लोक –18.72

कश्चित् एतत् श्रुतं पार्थ त्वया एकाग्रेण चेतसा

कश्चित् अज्ञानसम्मोहः प्रनष्ट:ते धनञ्जय

प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन से पूछ रहे हैं … ..

हे धनञ्जय ! क्य तुमनें उसे ध्यान से सुना जो मैं तुमको बताया ? क्या तेरा अज्ञान जनित ओह समाप्त हुआ ?

अर्थात मोह अज्ञान की उपाज है

Lord Krishna through this verse says , “ Delusion appears when pure understanding disappears . “

गीता में श्री कृष्ण का यह आखिरी सूत्र है

गीता श्लोक –18.73

यह अर्जुन का गीता में आखिरी श्लोक है जिसके माध्यम से वे प्रभु को धन्यबाद कर रहे हैं ------

नष्टो मोहः स्मृतिः लब्धा त्वतप्रसादात् मया अच्युत

स्थितः अस्मि गतसन्देह:करिष्ये वचनं तव

अर्जुन कह रहे हैं … ....

आप के प्रसाद स्वरुप मेरा मोह समाप्त हो गया है , मैं अपनी खोयी हुयी स्मृति को प्राप्त कर ली है अब मैं संशय रहित हूँ और आप के आज्ञा का पालन करने के लिए तैयार हूँ /

यहाँ इस सूत्र में कौनसा मनोविज्ञान का सूत्र छिपा है ? मोह अज्ञान एवं संदेह एक साथ रहते हैं /

Delusion , ignorance and doubts are the elements of dullness natural mode and remain together


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