गीता संकेत - 53 कर्म फल की सोच

गीता- तत्त्व
कर्म फल की सोच
गीता श्लोक –2.51
कर्मजं बुद्धियुक्ता : हि फलं त्यक्त्वा मनीषिण :
जन्मबंधविनिर्मुक्ता : पदम् गच्छन्ति अनामयम्
इस सूत्र को ऐसे देखें -----
हि बुद्धियुक्ता मनीषिणः कर्मजं फलं त्यक्त्वा
जन्मबंधविनिर्मुक्ता:अनामयम् पदं गच्छति
क्योंकि समबुद्धियुक्त ज्ञानीजन कर्म फल की सोच का त्याग करके जन्म – मृत्यु बंधन से मुक्त निर्विकार परम पद को प्राप्त करते हैं
अर्थात
समभाव की स्थिति वाला कर्म तो करता है लेकिन उस कर्म के फल की सोच उसके अंदर कभीं नहीं आती और वह कर्म – योगी निर्विकार परमपद को प्राप्त होता है
अर्थात
जिस कर्म के होनें में कर्म फल की सोच न हो वह कर्म परमगति का द्वार खोलता है//
Endowed with spiritual intelligence wise man giving up the results arising from actions certainly liberate themselves from the bondage of birth and death attaining the state of complete tranquility .”
Action performed without any desire liberates from birth and death cycle
through the awareness of the ultimate truth .
गीता पढ़ना जितना सरल है,गीता के सूत्रों में अपने को खोजना उतना ही कठिन और जो सूत्रों में स्वयं को पा लिया उसके जीवन यात्रा का रुख परम धाम की ओर स्वतः हो जाता है और वह
समभाव – कर्म योगी आवागमन से मुक्त हो जाता है//


==== ओम्========


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