अपनें देह को समझो

गीता सूत्र –18.20

सर्वभूतेषु येन एकम् भावंअब्ययम् ईक्षते

अविभक्तं विभक्तेषु तत् ज्ञानं विद्धि सात्त्विकं


जिस ऊर्जा से कोई जब सब में समभाव में एक अब्यय को देखता है,तब वह उर्जा सात्त्विक गुण की उर्जा होती है/


The energy through which one realizes the presence of Imperishable uniformally , that energy is the energy of the Goodness – mode .


सब में समभाव से एक अब्यय को जो दिखाए वह हैं सात्त्विक गुण , गीता का यह सूत्र आप को ध्यान में स्वतः खीच लाएगा , बश आप इस पर मनन करते रहें / यहाँ गीता के दो और सूत्रों को देखते हैं

गीता सूत्र –14.11

सात्त्विक गुण से देह के सभीं द्वार ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित रहते हैं //

गीता सूत्र –5.13

देह में नौ द्वार हैं , यह सूत्र यह बताता है //

नौ द्वारों में आँख[दो] ,नाक[दो] ,कान[दो] ,एक मुह,एक मल – इंद्रिय,एक मूत्र – इंद्रिय हैं

सभीं द्वार ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित रहते हैं,इस बात का क्या भाव है?

अर्थात ऐसा मनुष्य जिसके रगों में सात्त्विक गुण की धरा बह रही होती है उसका तन, मन, बुद्धि में निर्विकार ऊर्जा बह रही होती है/



=======ओम्=========


Comments

Popular posts from this blog

क्या सिद्ध योगी को खोजना पड़ता है ?

पराभक्ति एक माध्यम है

गीतामें स्वर्ग,यज्ञ, कर्म सम्बन्ध