तत्त्ववित् कौन है

गीता श्लोक –5. 8 , 5 . 9

न एव किंचित करोमि इति

युक्त:मन्येत तत्त्ववित्

पश्यन् शृश्वन् स्प्रिहन् जिध्रन्

अशनं गच्छन् स्वयन् श्वसन्||


प्रलयन् विसृजन् गृहनन्

उन्मिषन् निमिशन् अपि

इन्द्रियाणि इन्द्रिय – अर्थेषु

वर्तन्त इति धारएत् ||


गीता कह रहा है------------

जो स्वनियोजित हैं … .........

जो अपनी इन्द्रियों का एवं उनकी क्रियाओं का द्रष्टा है … ......

जो समभाव में रहता है … ....

जिसकी हर श्वास में प्रभु की स्मृति बसी होती है … ......

वह …...

तत्त्ववित् होता है ||


===== ओम ==========


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