मन इन्द्रिय होश



:तु इन्द्रियाणि मनसा

नियम्य आरभते अर्जुन

कर्मेन्द्रियै:कर्मयोगं

असक्त::विशिष्यते||


मन से इन्द्रियों को समझना …...

उनसे मित्रता स्थापित करना …..

कर्म – योग है …....

और----

ऐसा करनें से मन में जो उर्जा आती है वह अनासक्ति-ऊर्जा होती है जो सीधे

प्रभु की ओर ले जाती है||


Understanding of wisdom – senses ….....


establishing friendship with the senses …....

leads to -----

karma – yoga ….

and this purifies the energy flowing in senses and mind .

Understanding of senses , mind and objects and their relationship is …..

KARM A – YOGA


गीता पढनें की किताब नहीं …..

यह वह परम आइना है ….

जिसमें अपनें को देखना होता है||


=====ओम======




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