गीता यात्रा

अहं आत्मा गुडाकेश ----
सर्व - भूत आशय - स्थित :
गीता - 10.20

सभी जीवों के ह्रदय में आत्मा रूप में - मैं हूँ ॥
यह बात प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन से कहरहे हैं ------

आत्मा और परमात्मा
पर + आत्मा = परमात्मा
अर्थात
परम आत्मा , परमात्मा है औरफिर आत्मा क्या है ?

किसी तत्त्व को देखिये जैसे उदाहर के लिए हम लेते हैं
ताबा को जो एक धातु है जिसका बर्तन आम तौर पर
पूजा - बिधियों में प्रयोग होता है ।
ताबे के बर्तन को बिभाजित करते जाइए अंत में
एक अति शुक्ष्म कण में वह बर्तन मिलता है जिसमें
ताबे के सभी गुण होते हैं ।
यदि उस कण को और बिभाजित किया जाए तो आगे भी
नाना प्रकार के कण मिलते हैं लेकीन उन पार्टिकल्स में ताबे का गुण नहीं होता ।
वह सबसे छोटा कण जिसमें उसके मूल के सभी गुण हो
उसे मालेक्युल कहते हैं और एक मालेक्युल कई अन्य कणों के मिलनें से बनाता है , और ऐसे कण जिनको
एतांम कहते हैं आगे और भी शुक्ष्म कण इसमें होते हैं
और इस प्रकार वह ताबे का पात्र अति शुक्ष्म अस्थिर कणों में बिखर जाता है
जहां उन कणों को देख कर यह नहीं कहा जा सकता ही ये सभी कण उस ताबे के पात्र के हैं ।

आत्मा एक माध्यम है और परमात्मा भी एक माध्यम है ऐसा माध्यम जिसके परे कुछ नहींहै ।
आत्मा , परमात्मा माध्यम का वह माध्यम है जिसके अन्दर परमात्मा के सभी गुण हैं लेकीन
यह प्रभु के अधीन होता है । आत्मा एक ऐसा माध्यम है जो परा प्रकृति के माध्यम से जीव - बीजों को
धारण करता है जो बीज स्वयं प्रभु से हैं ।
आत्मा परमात्मा का एक तरह से मालेक्युल जैसा है जिसकी गति प्रभु अधीन है ।
जैसे एक एटम को प्रोटान , न्युत्रोंन , एलेक्त्रोंन में बिभाजित कर सकते हैं और
प्रोटोन आदि कणों को क्वार्क्स आदि कणों में और बिभाजित किया जा सकता है
वैसे आत्मा ओ बिभाजित नहीं किया जा सकता ;
यह अबिभाज्य माध्यम है क्योंकि इसको कण कहना
उचित न होगा ।
बीसवीं शताब्दी के पहले तक प्रकास को कण के रूप में देखा जा रहा था लेकीन अब ....
यह कण - लहर दोनों के रूप में समझा जाता है अर्थात ....
प्रकाश फोतांस नामक कणों की लहर जैसा है ॥
परमात्मा आत्मा जैसे कणों की लहर जैसा एक स्थिर माध्यम है जिस से एवं जिसमें
यह संसार है ॥

==== ॐ =======

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