गीता की यात्रा

भाग - 05

ध्यान निर्वाण का मार्ग है

क्या है , ध्यान ?

ध्यान वह है जो -----
इस संसार में एक और संसार दिखाए .........
स्वयं से मिलाये .......
प्रकृति - पुरुष के रहस्य को स्पष्ट रूप से दिखाए .....
और यह दिखाए की ::::::::::::
देख ! यह सत्य है और यह असत है और .......
दोनों जिस से हैं वह है -----
परम सत्य ॥
क्या ऐसा किसी के साथ होता भी होगा या यों ही एक कल्पना सा है ?
यह होता है और आप के साथ भी हो सकता है ,
ज़रा आप सोचना इस बात पर ========
आप BMW CAR में बैठ कर गुरुद्वारे गुरु नानकजी के बचनों को सुननें जाते हैं , क्या कभी
आप के अन्दर ऐसा भी विचार आया की =======
यदि आप गुरुद्वारे में बैठे - बैठे नानकजी साहिब बन गए तो आप की कार का क्या होगा ?
जिस दिन ऐसा विचार आप के अन्दर प्रवेश करेगा उस दिन आप गुरुद्वारा जाना तो बंद कर ही देंगे , लेकीन
आप बच नहीं पायेंगे , भूल जायेंगे इस कार को , इस संसार को और इस संसार में जो आप को दिखनें लगेगा , वह
कुछ और ही होगा
जिसको ....
ग्रन्थ साहिब ----
गीता .....
उपनिषद् .....
कहते हैं .....
परम सत्य ॥
कबीरजी साहिब को हम सुनते हैं
नानकजी साहिब को हम लोग सुनते हैं
मीरा के भजनों को सुनते हैं
सूर दास के भजनों को भी सुनते हैं
लेकीन कभीउनके जैसा बनना नहीं चाहते , क्यों ?
क्योकि हम अपनें मनोरंजन में अपना सारा जीवन गुजाए देते है
और जब ....
अंत समय आता है तब ......
चारपाई पर लेते - लेते .....
भय में डूबे हुए .....
अत्यंत तनहा इंसान के रूप में .....
उसकी ओर पीठ करके लेते रहते हैं ......
जिसके प्रसाद रूप में योगियों को मिलता है .....
परम धाम ॥
भोग में जो एक बार डूबा , डूबे - डूबे शरीर - त्याग कब और कैसे हो जाता है , यह भी एक राज ही है ॥
यदि होश में शरीर छोड़ना हो तो .....
ऊपर बताई गयी बातों पर विचार करना ॥

===== ॐ ======

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