गीता अमृत - 46

मृत्यु के बाद

सम्बंधित गीता - सूत्र
8.6, 15.8, 11.8, 18.75, 7.3, 7.19, 12.5

मनुष्य का शरीर जब समाप्त हो जाता है तब उसकी आगे की यात्रा कैसी होती होगी ? यह एक दार्शनिक
एवं वैज्ञानिक प्रश्न है ।
विज्ञान कहता है [ क्वांटम मेकैनिक ] - कोई भी सूचना पुरी तरह समाप्त नहीं होती , भौतिकी कहता है - ऊर्जा
न बनाई जा सकती है न समाप्त की जा सकती है और विज्ञान यह भी कहता है - जो है वह सब एक ऊर्जा का
रूपांतरण है ... वह है कौन ? इस बात पर विज्ञान एक मत पर नहीं है ।

स्थूल शरीर के बाद आत्मा या तो नया शरीर धारण करता है या प्रभू में बिलीन हो जाता है जिसको परम
पद कहते हैं अर्थात वह आत्मा वाला पुनः जन्म नहीं लेता ।
भोगी मनुष्य भूतों से डरते हैं और योगी भूतों से वार्तालाप करते हैं । भूत क्या हैं ? ऐसे आत्माएं जो अगले
जन्म के लिए नया शरीर खोजते रहते हैं , जो भ्रमणकारी हैं जिनके पास इन्द्रियाँ एवं मन है , भूत कहलाते
हैं । भूत वह हैं जो अतृप्त आत्मा है जो ऐसा शरीर खोज रहा होता है जिसके माध्यम से वह अपनी कामना
को तृप्त कर सके ।

सिद्ध योगी आत्माओं से किस तरह वार्ता करते हैं ?
गुर्जिअफ़ , ओलिवर लांज , हब्बार्ड , एडगर कायसी , फ्रायड , निजाम हैदराबाद - ये सभी लोग भूतों के
अस्तित्व को मानते थे और इन लोगों को दुनिया जानती भी है । सिद्ध प्राप्त योगी की ऊर्जा
निर्विकार होती है , उसे ऐश्वर्य - चक्षु मिली होती है जिससे वह ब्लैक - व्हाइट में एक फोटोंन जैसे शुक्ष्म
कण को भी देख सकता है - यह बात दर्शन नहीं विज्ञान कहता है । योग से आँखों में स्थित कोंस की शक्ति
कम हो जाती है और रोड्स की क्षमता हजार गुना बढ़ जाती है और रोड्स केवल ब्लैक - व्हाइट में ही देखते हैं , वह भी रात्री में । भूतों का सम्बन्ध दिन से नहीं रात से होता है और रात में रोड्स के
माध्यम से जीव देखते हैं ।
भोग ही जिसका जीवन है ......
राग - रूप ही जिनके जीवन का केंद्र रहा हो .....
काम ही जिनके जीवन का केंद्र होता है ......
जो परमात्मा को भी भोग के लिए प्रयोग करते हैं .....
उनको भूत - प्रेत योनी मिलनी आसान होती है , लेकीन....
परम प्यार में डूबा योगी परम गति में पहुँच कर आवागमन से मुक्त हो जाता है ।

======ॐ==============

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