अर्जुन का प्रश्न - 14

अर्जुन जानना चाहते हैं [ गीता-श्लोक 14।21]......गुणातीत की पहचान क्या है और गुणातीत कैसे बना जा सकता है ?
अर्जुन का अगला प्रश्न गीता-श्लोक 17.1 से है अतः यहाँ हमें गीता के 50 श्लोकों [ गीता श्लोक 14.22--16.24] को और साथ में आठ अन्य श्लोकों [2.45,3.5,3.27,3.33,9.12-9.13,18.59-18.60] को भी देखना है ।
आइये अब चलते हैं उन श्लोकों को देखनें जिनकी चर्चा ऊपर की गयी है ।
## श्लोक 14.22 से 14.27 तक
श्री कृष्ण कहते हैं --सम भाव गुणों को करता देखनें वाला , गुणातीत योगी होता है ।
## श्लोक 15.1 से 15.20 तक
यहाँ श्री कृष्ण आत्मा- परमात्मा एवं संसार के सम्बन्ध को स्पष्ट किया है ।
##श्लोक 16.1 से 16.24 तक + श्लोक 9.12- 9.13
श्री कृष्ण यहाँ मनुष्यों की दो श्रेणीओं के बारे में बताया है ।
## श्लोक 2.45, 3.5, 3.27, 3.33, 18.59-18.60
श्री कृष्ण यहाँ कहते हैं --गुणों से स्वभाव का निर्माण होता है और मनुष्य स्वभावतः कर्म करता है , ऐसे
सभी कर्म भोग- कर्म होते हैं ।
परम श्री कृष्ण गुन , स्वभाव एवं कर्म का जो समीकरण गीता अध्याय 14, 2, 3 तथा 18 में दिया है ,
उस बिषय पर वैज्ञानिक अनजानें में कुछ प्रयोग किया है जिसका परिणाम कुछ इस प्रकार है------
अभी हाल में अमेरिकन वैज्ञानिक cellular memory and ischemia syndrome evaluation दो शब्दों से दो बातें बताई हैं ------
1- Cellular Memory
वैज्ञानिक कहते हैं.......जब एक ब्यक्ति का कोई अंग दूसरे में लगाया जाता है तब पहले ब्यक्ति का स्वभाव भी अंग के साथ दूसरे ब्यक्ति में पहुँच जाता है अर्थात मनुष्य के प्रत्येक कोशीका में उनका स्वभाव भी होता है ।
गीता इस बात को इस प्रकार से ब्यक्त करता है .....मनुष्य की हर कोशिका में तीन गुणों का एक समीकरण होता है और हर कोशिका में गुणों के साथ मन , बुद्धि , अंहकार , चेतना , आत्मा- परमात्मा , पञ्च महाभूत होते हैं ।
2- Ischemia Syndrome Evaluation
वैज्ञानिक कहते हैं ....मनुष्य एवं स्त्री के हृदयों में फरक होता है ; स्त्री का ह्रदय ह्रदय की कुछ बिमारियों को इस कदर छिपानें में सक्षम है जिनको आम विधियों से पकड़ना संभव नही अतः इनको पकडनें के लिए कुछ नयी तकनीक का विकास किया गया है जिसको इस्केमीया सिंड्रोम एवैलुएसन कहते हैं.
गीता अपनें अध्याय १५ में कुछ वैज्ञानिक बातें बताई है जैसे अग्नि , सूर्य एवं चन्द्रमा का तेज परमात्मा है , चन्द्रमा का वह गुन जिस से वह बनस्पतियों में औषधि के गुणों को डालता है , वह परमात्मा से है । गीता आगे कहता है ....मनुष्य अपनें चार प्रकार के भोजन को जिस ऊर्जा से पचाता है , वह परमात्मा से है । गीता अपनें १६वी अध्याय में दो प्रकार के लोगों की बातें बताता है ; एक वे हैं जिनका केंद्र परमात्मा है और दूसरे वे हैं जिनके लिए भोग ही परम है ।
गुणातीत कोई बन नहीं सकता यह तो प्रभु का प्रसाद है जो कई सालों के बाद किसी एक को
मिलता है ।
====ॐ=====

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