गीता में दो पल - 15

गीतामें दो पल -14 में योगकी दो परिभाषाएं देखनेंको मिली ; एक गीता - 6.23 में कृष्णकी जो कहता है ," दुःख संयोगवियोगः योगः " और दूसरी परिभाषा थी पतंजलि - योग सूत्रकी जहाँ पतंजलि कहते हैं ," चित्त बृत्ति निरोधः योगः "। * आइये ! देखते हैं चित्त और दुःखके सम्बन्ध को :------
 # दो शब्द दिखते हैं - मन और चित्त । बहुत भ्रम है इन दो शब्दों में । ज्यादातर लोग इन दो शब्दोंको एक दूसरेके पर्यायवाची रूपमें प्रयोग करते हैं । 
* भागवतमें अंतः करणके चार तत्त्व दिए गए हैं - मन , बुद्धि ,अहंकार और चित्त । 
# भागवत : 10.6.42> यहाँ शुकदेव जी कहते हैं , पञ्च महा भूत + पञ्च तन्मात्र + 10इन्द्रियों + पञ्च प्राण +मन और बुद्बिका केंद्र है , चित्त । पांच प्रकार की वायुओं - प्राण वायु + अपान वायु+ ब्यान वायु - उदान वायु और समान वायुको प्राण कहते है ।
 << कुछ और जानकारी अगले अंक में >>
 ~~~ ॐ ~~~

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