क्या करोगे जान कर /

<> यही रहस्य है <>
 * जीवनको समझते -समझते जीवनका अंत आजाता है और हमें जीवनका स्वाद तो नहीं मिल पाता ,पर जो हमारे साथ जाती है वह है घोर अतृप्तता । गीता में प्रभु कृष्ण कहते हैं , देह त्याग कर जब आत्मा चलता है तब उसके साथ मन - इन्द्रियाँ भी होती हैं । भागवत (स्कन्ध - 2,3,11) कहता है , सात्विक अहंकार कालके प्रभाव में मन की उत्पत्ति करता है और 10 इन्द्रियाँ राजस अहंकार एवं कालके सहयोग से उत्पन्न होती हैं ।मनुष्य के देह में मन की स्थिति वैसी होती है जैसे हवाई जहाज में ब्लैक बॉक्स की स्थिति होती है । सृष्टि प्रारम्भ से आजतक का इन्द्रियों का अनुभव मनमें संचित होता है और सघन अतृप्त अनुभव मनुष्य के अगले योनिको निर्धारित करता है । 
* पढ़ लेंगे तब , कारोबार सेट हो जाएगा तब , बच्चे हो जायेंगे तब , बच्चे बड़े होजाएंगे तब , बच्चों का ब्याह हो जाएगा तब ,इस तब के इन्तजार में जीवन नौका कब और कहाँ अपनीं परम यात्रा पर निकल जाती है ,हमें भनक तक नहीं मिल पाती और हम उसकी यात्रा के मूक दर्शक बन जाते हैं । मन इन्द्रियों के साथ आत्मा यात्रा पर होता है ,हमारा प्यारा शरीर जिसे हम कौन सा सुख नहीं देना चाहा वह बिचार अपनें ही घर के बाहर जमीं पर लेटाया गया होता है और वह अपनें जिनको खडा करते -करते हमारी अपनीं कमर झुक गयी थी , वे इस हमारे शरीरको अग्नि के हवाले करनें की सोच में घबडाए से दिख रहे हैं।
 * मनुष्य सबकुछ समझता है ,सबकुछ जानता है लेकिन यह नहीं जान पाता कि :----
 # कहाँ और कब ....
 # किसके सामनें ....
 # किस स्थिति में .... 
हम आप सबसे जुदा होंगे ।। 
~~~ हरे कृष्ण ~~~

Comments

Popular posts from this blog

क्या सिद्ध योगी को खोजना पड़ता है ?

पराभक्ति एक माध्यम है

गीतामें स्वर्ग,यज्ञ, कर्म सम्बन्ध