गीता तत्त्व भाग -5

●● पढो और मनन करो ●●
1- प्रभु ! किसी की नज़र आप पर टिके या न टिके पर आपकी नज़र सब पर समभाव से होती है ।
2-सत्यकी खोज इन्द्रियोंसे प्रारम्भ होती है पर इन्द्रियों तक सीमित नहीं ।
3- जिस घडी तन - मन दोनों प्रभुको समर्पित हो गए उसी घडी अनन्य भक्तिकी लहर उठनें लगती है । 4- चलना तो होगा ही , सभीं चल रहे हैं ,ज्यादातर लोगोंकी चाल में चाह की उर्जा होती है जो भोग में रखती है पर बिना चाह की चाल प्रभु की ओर लेजाती है ।
5-सभीं जल्दीमें हैं , सबको फ़िक्र है की इतना सारा काम इस छोटे से समयमें कैसे हो सकेगा ?
6 - वेश - भूषासे चाहे जो बन लो , लोगों द्वारा चाहे जो उपाधि प्राप्त कर को जैसे जगत गुरु , योगाचार्य  कृपाचार्य या शंकराचार्य लेकिन ह्रदयके रूपांतरण बिना भक्तिका रस पाना संभव नहीं और हृदयका रूपांतरण ही प्रभुका प्रसाद है जो किसी - किसी को मिल पाता है ।
~~~ ॐ ~~~

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