मूर्ति एक माध्यम
● मुर्तिके माध्यमसे ...
<> पिछले अंकमें आठ प्रकारकी मूर्तियोंको देखा गया जिनको भागवत दो भागों में देखता है ; एक चल मूर्ति होती है और दूसरी अचल ।
<> मुर्तिके माध्यमसे साधन करना अति सरल है और अति कठिन भी । साधना तन - मन का वह मार्ग है जो ब्रह्मके साथ एकत्व स्थापित करता है । ब्रह्मसे एकत्व स्थापित होना समाधि
है ,समाधि इन्द्रियों और मन -बुद्धिमें बह रही उर्जाके रुखको बदलती है।
समाधि साधनाका फल है जहाँ साधक साकारका द्रष्टा - साक्षी होता है और इन्द्रियों ,मन -बुद्धिमें बह रही उर्जा निर्विकार होती है । समाधि वह द्वार है जिसके दरवाजे तक साकार की पहुँच होती है और जिसके अन्दर निराकार की अनुभूति । समाधिकी लोगोंनें परिभाषा बुद्धि स्तर पर बनाया है लेकिन उससे समाधि स्पष्ट नहीं होती । क्या विकल्प और क्या निर्विकल्प समाधि ,समाधि तो वह घडी है जब परम का द्वार खुलता है , साधक द्वार खुलना देखता है लेकिन क्षण भरमें वह समाधि में ऐसे खीच जाता है जैसे कोई ब्लैक होल किसी कोस्मिक बॉडी को खीच लेता है ।
* समाधिकी अनुभूति अब्यक्तातीत है उसे कोई आज तक ब्यक्त नहीं कर सके और जो कोशिश भी किये वे पूर्ण असफल रहे ।
* बुद्ध , महाबीर , सुकरात , कबीर , नानक , मीरा और राम कृष्ण परम हंस क्या बताना चाह रहे थे और बताते -बताते स्वयं अब्यक्तमें समा गए पर जो ब्यक्त करना चाहते थे उसे ब्यक्त न कर पाए ।
<> Prof. Albert Einstein says :
In the oriental concept , there is something that exists beyond the ordinary perception of things and which is beyond mind's reasoning .
* आज इतना *
~~ ॐ ~~
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