गीता अध्याय - 13 भाग - 17

गीता श्लोक - 13.24 

ध्यानेन आत्मनि पश्यन्ति केचित् आत्मानं आत्मना 
अन्ये साङ्ख्येन योगेन कर्म योगेन च अपरे 

" ध्यान माध्यम से किसी - किसी को प्रभु की झलक ह्रदय में मिलती है "
" किसी - किसी को सांख्ययोग के माध्यम से मिलती है "
" किसी - किसी को कर्म - योग के माध्यम से मिलती है "

" Meditation , intelligence based yoga and action - yoga , these are the available sources through which one can reach to the ultimate realization of the Supreme "

मनुष्य मात्र एक ऐसा प्राणी है जो अपनें लिए तो घर बनाता ही है प्रभु के लिए भी घर बनाता है और वह यह भी चाहता है कि प्रभु उसके ही घर में उसके परिवार का एक सदस्य बन कर रहें / 
प्रभु कैसा है ? प्रभु कहाँ है ? प्रभु क्या है ? ऐसे एक नहीं अनेक प्रश्न हैं , मनुष्य की बुद्धि में और जब इन प्रश्नों को समझनें का मौक़ा आता है तब हम चूक  जाते हैं / ऐसा कोई मनुष्य नहीं होगा जिसके जीवन में प्रभु की एक झलक न मिली हो लेकिन ज्योही झलक मिलनी होती है , हमारी आँखें झपक पड़ती हैं / 
मंसूर को जब झलक मिली तब वह बोल उठा - अनल हक और लोग उसे पागल समझ बैठे और मार डाले /
गीता में अर्जुन के सारथी के रूप में पूर्णावतार प्रभु श्री कृष्ण हैं , बार - बार कहते है कि मैं ही ब्रह्म हूँ , मैं ही परमात्मा हूँ और मैं ही महेश्वर हूँ लेकिन अर्जुन इस बात को माननें को तैयार नहीं / गीता अध्याय 7,9 और 10 में 99 श्लोकों में 221 उदाहरणों के माध्यम से श्री कृष्ण स्वयं को प्रभु बता रहे हैं , ऐश्वर्य आँखें भी दी और अपनें अनेक आश्वर्य रूपों को दिखाया भी लेकिन अर्जुन को यकीनन नहीं होता /

भागवत पुराण में कुंती कहती है ---

इंद्रियों के माध्यम से हम जिसे समझते हैं उसकी तह में परमात्मा होता है 

Prof, Einstein कहते हैं -

 परमात्मा है लेकिन मेरा परमात्मा वैसा न हींजैसा लोगों का परमात्मा है , मैं उस नियम को परमात्मा की संज्ञा देता हूँ जिसके आधार पर सब कुछ हो रहा है / 

=== ओम् =====

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