गीता अध्याय - 13 भाग 16

गीता श्लोक - 13.23 

यः एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिम् च  गुणै: सह
सर्वथा वर्तमानः अपि न सः भूयः अभिजायते 

" जो प्रकृति - पुरुष को समझता है , उसका वर्तमान चाहे जैसा हो पर वह आवागमन मुक्त होजाता है "

" The awareness of Prakriti [ nature ] and Purush [ the omnipresence ] takes to  liberation ."

अध्याय - 13 के प्रारम्भ में प्रभु कहते हैं - क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है / क्षेत्र अर्थात देह और क्षेत्रज्ञ अर्थात देह को चलानें वाली ऊर्जा का परम श्रोत प्रभु का अंश जीवात्मा / 

अब देखिये गीता श्लोक - 13.20 जहाँ प्रभु कह रहे हैं .....

कार्य और करण प्रकृति से हैं /


  • पांच बिषय और पञ्च महाभूत तत्त्व विज्ञान में कार्य कहलाते हैं और 10 इन्द्रियाँ , मन , बुद्धि एवं अहँकार को करण कहते हैं /


गीता श्लोक - 13.21 में प्रभु कहते हैं , प्रकृति में ही पुरुष स्थित है /

अब इस तत्त्व ज्ञान को समझते हैं कुछ इस प्रकार से -----

एक परमेश्वर जिसका कोई साक्षी नहीं , कोई गवाह नहीं , कोई द्रष्टा नहीं तब जब प्रकृति न हो /

परमेश्वर से परमेश्वर में तीन गुणों की उसकी माया है / 

माया  सम्मोहित परमेश्वर से दूर रहता है / 

माया मुक्त परमेश्वर में बसता है / 

माया से माया में दो प्रकृतियाँ ;  अपरा [ पञ्च महाभूत + मन , बुद्धि , अहँकार ] + परा [ चेतना ] /

दो प्रकृतियों का योग = जड़ + चेतन का अस्तित्व 

=== ओम् =====

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