गीता श्लोक - 2.60
गीता के 700 श्लोकों में लगभग 200 ऐसे श्लोक हैं जिनका सम्बन्ध सीधे ध्यान से है और इस दो सौ श्लोकों का पहला श्लोक आप से साथ कुछ इस प्रकार है .........
यतत: हि अपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चित :
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः
गीता - 2.60
" बिषय में आसक्त इंद्रिय मनुष्य के मन को हर लेती है "
बिषय , ज्ञान इन्द्रियाँ , मन , बुद्धि एवं कर्म इंद्रियों का आपसी गहरा सम्बन्ध है / पांच ज्ञान इन्द्रियाँ हैं और सबका अपना - अपना बिषय है / ऐसा कोई बिषय नहीं जिसमें राग -द्वेष न् हों [ गीता - 3.34 ] और यही राग - द्वेष ज्ञान इंद्रियों को सम्मोहित करते हैं और इस सम्मोहन से वैरागी इन्द्रियाँ रागी इंद्रियों में बदल जाती हैं /
वैरागी इंद्रियों के साथ बसा मन प्रभु का दर्पण होता है
और
रागी इंद्रियों से आसक्त मन भोग संसार का दर्पण होता है /
इंद्रिय - बिषय के संबंधों का द्रष्टा ही गीता का समभाव योगी होता है /
==== ओम् ========
यतत: हि अपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चित :
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः
गीता - 2.60
" बिषय में आसक्त इंद्रिय मनुष्य के मन को हर लेती है "
बिषय , ज्ञान इन्द्रियाँ , मन , बुद्धि एवं कर्म इंद्रियों का आपसी गहरा सम्बन्ध है / पांच ज्ञान इन्द्रियाँ हैं और सबका अपना - अपना बिषय है / ऐसा कोई बिषय नहीं जिसमें राग -द्वेष न् हों [ गीता - 3.34 ] और यही राग - द्वेष ज्ञान इंद्रियों को सम्मोहित करते हैं और इस सम्मोहन से वैरागी इन्द्रियाँ रागी इंद्रियों में बदल जाती हैं /
वैरागी इंद्रियों के साथ बसा मन प्रभु का दर्पण होता है
और
रागी इंद्रियों से आसक्त मन भोग संसार का दर्पण होता है /
इंद्रिय - बिषय के संबंधों का द्रष्टा ही गीता का समभाव योगी होता है /
==== ओम् ========
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