जीव रचना भाग दो

गीता के एक सौ सोलह सूत्रों की माला के अंतर्गत जीव रचना के सम्बन्ध मे कुछ गीता के और सूत्रों को हम यहाँ देखनें जा रहे हैं------

गीता सूत्र –13.6 – 13.7

पञ्च महाभूत,दस इन्द्रियाँ पांच बिषय,मन,बुद्धि,अहंकार अब्यय,गुण तत्त्व जैसे कामना,द्वेष,सुख – दुःख,धृतिका,चेतना,विकार आदि के साथ देह की रचना है और जब इसमें आत्मा का आना हो जाता है तब यह देह जीव – देह बन जाता है/

गीता सूत्र –13.27

सभीं जड़ एवं चेतन क्षेत्र तथा क्षेत्रज्ञ के योग का फल हैं//

गीता के कुछ सूत्र जैसे सूत्र 74 , 7.5 , 7,6 , 13.6 , 13.7 , 14.3 , 14.4 को जब एक साथ देखते हैं तब जो बात सामनें आती है वह कुछ इस प्रकार से होती है //

दो प्रकृतियाँ;जड़ एवं चेतन जब आपस में मिलती हैं …....

क्षेत्र एवं क्षेत्रज्ञ का जब आपस में मिलन होता है …..

प्रकृति एवं पुरुष जब मिल कर एक होते हैं …...

तब ….

अपरा प्रकृति के आठ तत्त्व एवं चेतना के फ्यूजन में ब्रह्म के सहयोग से आत्म का फ्यूजन यदि होता है तब एक नये जीव का निर्माण होता है , यह है गीता का विज्ञान //

आप अब ऊपर दिए गए गीता के सूत्रों को दुनिया की किसी भी भाषा में समझनें की कोशिश करे और जब आप शांत मन – बुद्धि से समझेगे तब जो आप की समझ में आएगा वह वही होगा जिसको अभीं हम ब्यक्त करनें की कोशिश किये हैं //


=====ओम======


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