गीता के 116 सूत्र अगला सूत्र – 5.11 कायेन मनसा बुद्ध्या केवलै : इन्द्रियौ : अपि योगिनः कर्म कुर्वन्ति संगम् त्यक्त्वा आत्म शुद्धते // कर्म योगी अपने तन , मन एवं बुद्धि से जो भी करता है वह उसे और पवित्र बना देता है // Actions from body ,mind and intelligence performed by Karma – Yogin make him purer . अब आप पिछले दस सूत्रों का सारांश देखें … .. कर्म – योग भोग से योग की यात्रा है आसक्ति रहित कर्म ही कर्म – योग है आसक्ति रहित कर्म ज्ञान की जननी है आसक्ति रहित कर्म समभाव की स्थिति में होता है आसक्ति रहित कर्म से नैष्कर्म – सिद्धि मिलाती है नैष्कर्म – सिद्धि ज्ञान – योग की परा निष्ठा है आसक्ति रहित कर्म मुक्ति - पथ है ===== ओम =======
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Showing posts from May, 2011
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गीता के 116 ध्यान सूत्र अगले सूत्र गीता सूत्र 18.49 , 18.50 सूत्र - 18.49 प्रभु कह रहे हैं ------ आसक्ति रहित कर्म नैष्कर्म्य – सिद्धि का द्वार खोलती है // Action without attachment opens the door of the perfection of the Karma – Yoga . सूत्र - 18.50 यहाँ प्रभु कह रहे हैं ------ नैष्कर्म्य – सिद्धि ज्ञान – योग कि परा निष्ठा है // Perfection of Karma – Yoga takes into wisdom . प्रभु अर्जुन के माध्यम से हम सब को बता रहे हैं कुछ ऎसी बात जो सभीं साधनाओं का सार है / प्रभु कह रहे हैं कितना पढोगे शास्त्रों को ? , कितनी संगती करोगे सत पुरुषों की ? , कितनी भक्ति करोगे मंदिरों में ? अब तो मैं वह मार्ग बता रहा हूँ जिसको खोजनें की जरुरत नहीं तुम उस मार्ग पर हो ही लेकिन जिस मार्ग पर हो उसे भूल रहे हो , वही मार्ग तुमको मुझ तक पहुंचानें में सक्षम है / प्रभु कह रहे हैं … .... जो तुमसे हो रहा है उसका तुम कर्ता नहीं द्रष्टा बन जाओ जो तुमसे हो रहा है तुम उसे देखते रहो जो तुमसे हो रहा है वह किस ऊर्जा से हो रहा है उसे देखो जो तुम से हो रहा है उसके होने ...
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गीता के 116 ध्यान सूत्र अगला सूत्र गीता सूत्र – 2.57 य : सर्वत्र अनाभिस्त्रेह : तत् तत् प्राप्य शुभ अशुभं / न अभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता // सम – भाव वाला स्थिर – प्रज्ञ होता है // Man with settled intelligence remains even in gain and loss . He always remains even under all circumstances . सम – भाव की स्थिति क्या है ? भाव , सम – भाव और भावातीत , ये तीन मन की स्थितियां हैं / भाव में हमारा मन – बुद्धि हमेशा रहते हैं , यह स्थिति जन्म से मिली हुयी है / जन्म दो के मन , बुद्धि , चेतना एवं आत्मा के फ्यूजन का नाम है / जब दो के मन – बुद्धि के क्वांटा आपस में मिल कर एक होते हैं तब उन दो के स्वभाव भी आपस में मिल कर एक नये स्वभाव के निर्माण का बीज रखते हैं / आनें वाले बच्चे का स्वभाव कैसा होगा , इसका लेखा - जोखा स्त्री - पुरुष के उन कणों में बंद होता है जो आपस में मिल कर एक होते हैं / मनुष्य के मन – कण में सृष्टि के प्रारम्भ से वर्त्तमान तक के सभीं स्वभाव होते हैं और नये आनें वाले बच्चे में उनमें से कोई भी स्वभाव आ सकता है / मनुष्य अपन...
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गीता के 116 सूत्र अगला सूत्र गीता सूत्र – 3.20 सूत्र कहता है … .. आसक्ति रहित कर्म से नैष्कर्म्य की सिद्धि मिलती है जैसे राजा जनक को मिली थी / This verse says ----- Action without attachment leads to Yoga – Perfection which is the realization of the ultimate truth . राजा जनक कौन थे ? राजा जनक मिथिला नरेश थे और माँ सीता इनकी बेटी थी / यह बात सभीं लोग जानते हैं और राजा जनक को विदेह कहते हैं और विदेह का अर्थ है वह जो देह बिना हो / इस बात को समझ लो ----- मिथिला राज्य में आधा बिहार और नेपाल का कुछ भाग आता था / धनुषा जिले में जनकपुर , नेपाल का भाग मिथिला में हुआ करता था / मिथिला भारत का ह्रदय था ; भारतीय प्राचीन इतिहास में जितनें भी दार्शनि और बुद्धि जीवी हुए हैं , उनमें से अधिकाँश का सम्बन्ध मिथिला से रहा है / त्रेता योग मे माँ सीता का सम्बन्ध मिथिला से रहा तो द्वापर में कंश की पत्नी भी मिथिला की थी / भगवान महावीर और भगवान बुद्ध का सम्बन्ध भी म्थिला से था / ईशा पूर्व में याज्ञबल्कय नामक गणितज्ञ पहली बात कहा कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक...
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गीता के 116 ध्यान – सूत्र अगला सूत्र गीता - 3.19 यह सूत्र कह रहा है … ... आसक्त रहित कर्म मुक्ति पथ है // An action without attachment is a journey of NIRVANA . गीता एक मात्र ऎसी किताब बाजार में उपलब्ध है जो … . सर्वत्र उपलब्ध है एक नहीं अनेक रूपों में उपलब्ध है एक नहीं अनेक भाषाओं में उपलब्ध है जिसकी कीमत इतनी कम है कि कोई भी खरीद सकता है लेकिन … यह तब संभव होगा जब अन्तः करण में गीता कि प्यास उठेगी / गीता की बातें प्यारी लगती हैं , केवल पढनें में , लेकिन यदि उनको आप अपनें जीवन में धारण करते संसार अपनी ओर खीचेगा और बहुत कम् लोग ऐसे होते हैं जो संसार की ग्रेविटी के बिपरीत चल पाते हैं // ==== ओम ======
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गीता के 116 सूत्रों की माला अगला सूत्र गीता सूत्र – 4.22 यद् इच्छा लाभ संतुष्ट : द्वन्द अतीत : विमत्सरः सम : सिद्धौ असिद्धौ च कृत्वा अपि ण निवध्यते // जो मिल गया बिना चाहे उस से संतुष्ट जो रहता हो … .. सभीं परिस्थितियों में जो सम रहता हो … .. ऐसा ब्यक्ति कर्म का गुलाम नहीं होता // He who is contended with whatever is got unsought , is free free from jealousy and has transcended all pairs of dualities and is balance under different circumstances he remains stable , such man is perfect Karma – Yogin and he does not get controlled by his Karma . गीता का कर्म – योग प्रभु श्री कृष्ण का वह उपहार है जो भारत भूमि पर सर्वत्र उपलब्ध है लेकिन उसे लेनेंवाला कोई नहीं दिखता , यह एक अछूता उपहार पिछले पांच हजार साल से यहाँ सर्वत्र अपनी रोशनी फैला रहा है और लोग अँधेरे में भटक रहे हैं // मैं भी उन्हीं लोगों में से एक हूँ जो भटक रहे हैं , मैं कोई योगी नहीं महान पापी हूँ और अपनें पिछले पापों को धो कर यहाँ से जाना चाह रहा हूँ // ===== ओम ======
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गीता के एक सौ सोलह सूत्र अगला सूत्र गीता सूत्र – 2.48 योगस्थ : कुरु कर्माणि संग ब्यक्त्वा धनञ्जय / सिद्धि - असिद्धयो : सम : भूत्वा समत्व योग : उच्यते // जय – पराजय , सिद्धि - असिद्धि की सोच जिस कर्म में न हो … .. वह कर्म ----- समत्व – योग कहलाता है // Action done with an even mind having no attachment and expections is called Evenness – Yoga . What is samatvam ? It is a status of mind – intelligence frame where both are not taking part in the action but they remain just witnessers . गीता मे प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं … .... जो कर्म तुमसे हो रहा है उस कर्म का कर्ता तुम नहीं हो , कर्म कर्ता तो गुण समीकरण है जो तेरे अंदर है , तूं तो मात्र एक यंत्र की भाँती हो जिस से कर्म हो रहा है / जिस वक्त तेरे अंदर यह बात बैठ जायेगी उस घडी तूं समत्व – योग मे होगा // समत्व - योग प्रभु के आयाम में पहुंचनें का पहला खुला द्वार है // पढ़ना आसान , बोलना आसान , लिखना आसान लेकिन इस स्थिति में पहुँचना ---- ? ===== ओम =======
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गीता के एक सौ सोलह सूत्र गीता सूत्र – 18 . 23 सूत्र कह रहा है ------ जिस कर्म के होनें के पीछे … ... आसक्ति कामना क्रोध लोभ मोह कर्म – फल की उम्मीद और ---- अहंकार न हो , वह कर्म सात्त्विक कर्म होता है // Here Gita says ….... That action which is done without attachment , desire , anger , greed , delusion , result and ego , is said to be sattvik action [ goodness action ] . क्या हम ऐसे कर्म के बारे में सोच सकते हैं ? कैसा होता होगा ऐसा कर्म ? जिस दिन , जिस घडी इसे जाननें की सोच उठेगी वह दिन आप के लिए नया दिन होगा / इस सूत्र को समझना ही कर्म – योग है // ===== ओम ======
भाव से भावातीत
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भाव की भाष भाषा बुद्धि की उपज है और भाव ह्रदय से उठते हैं भाषा से भाव ब्यक्त नही किए जा सकते भावों को ब्यक्त करते हैं -- आंखों से झरते आंशुओं की बूंदें जो लोग भाव को भाषा से ब्यक्त करनें की कोशिश की वे सभी असफल रहे बुद्धि आधारित बिषय की परिभाषा होती है लेकिन भाव आधारित बिषय की परिभाषा सम्भव नही बुद्धि आधारित लोग शास्त्रों की रचना करते हैं , भावों वाले भावों में बहते ही रहते हैं बुद्धि आधारित ब्यक्ति किनारे की खोज करता है और भाव में जो डूबा है वह जानता ही नहीं कि किनारा क्या होता है ? भाव के तीन केन्द्र हैं ; ह्रदय , नाभि और स्वाधिस्थान चक्र [काम चक्र ] ह्रदय से उठनेंवाले भाव के पीछे कोई कारण नही होता अन्य दो के पीछे कोई कारन होता है बाहर से दोनों भावों को पहचानना सम्भव नहीं आप में जब भाव उठें तब उनको आप पहचाननें की कोशिश करे, आप को आनंद मिलेगा ====ॐ======