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बुद्धि योग गीता भाग - 04

बुद्धि - योगी बुद्धि - योगी कौन है ? यदि आप ज़रा ध्यान से देखें तो विज्ञान बुद्धि - योग का एक प्रभावी माध्यम है और गणित भी बुद्धि - योग साधना का एक प्रभावी माध्यम बन सकता है । आज विज्ञान में यह बात चर्चा का बिषय है की आइन्स्टाइन एक योगी थे या वैज्ञानिक ? योगी और वैज्ञानिक में क्या फर्क है ? योगी अपनी अनुभूति को जब शब्दों में ब्यक्त करना चाहता है तब वह काफी कठिनाई का सामना करता है और पूर्ण रूप से ब्यक्त करनें में सफल भी नहीं होता । आइन्स्टाइन का सापेक्ष सिद्धांत का गणित लगभग दस साल बाद आंशिक रूप से तैयार हो पाया और पिछले सौ वर्षों से आइन्स्टाइन के द्वारा कही गयी बातों की गणित बनाई जा रही है । बुद्धि जब थक जाती है तब यह स्थिर हो जाती है लेकीन यह स्थिर पंन अल्प समय के लिए होता है । जब बुद्धि सोच के बिषय पर टिक जाती है तब उस बुद्धि में उस बिषय का सही रूप झलकता है । बुद्धि को थकाओ नहीं बुद्धि को भगाओ । आइन्स्टाइन कहते हैं -- मेरी बुद्धि आम आदमी की बुद्धि की ही तरह है , एक छोटा सा अंतर है - आम आदमी सोच से भागता है और मैं सोच में बसना चाहता हूँ । जो सोच में बस गया उसकी सोच सत को पकड़ ह

बुद्धि योग गीता - भाग - 03

गीता की ओर या गीता से दूर भारत में गीता और सांख्य - योग अति प्राचीन हैं लेकीन क्या कारण है की इनका लोगों पर प्रभाव न के बराबर है ? भारत परम श्री कृष्ण की ओर जाता तो दिखता नही न्यू यार्क की ओर जाता जरुर दिखता है । भारतीयों को अपनी चीजे कम और पराई चीजे अधिक प्रभावित करती हैं । भारत में हिन्दू परिवार का गीता एक सदस्य है लेकीन उसे वह प्यार न मिल सका जो मिलना था । लोग इसे कपडे में लपेट कर रखते हैं और खोलते तब हैं जब परिवार में कोई आखिरी श्वास भर रहा होता है । क्या कारण है की लोग इसको कपडे में लपेट कर रखते हैं ? और क्यों उसे सुनाते हैं जो जाने ही वाला है ? गीता से प्यार करनें वालों की संख्या न के बराबर है क्यों की गीता बैरागी बनाता है । गीता आखिरी श्वास भरते को इसलिए सुनाते हैं की शायद उसे स्वर्ग में जगह मिल जाए । ऐसा ब्यक्ति जो जीवन भर भोग को गले में लटकाए घूमता रहा उसे अंत समय में गीता सूना कर स्वर्ग का टिकट देनें की बात लोगों के अन्दर कैसे आई होगी ? इस पर सोचना चाहिए । गीता में प्रभु अर्जुन को युद्ध पूर्व बैरागी बना कर युद्ध कराना चाहते हैं या ऐसा चाहते हैं की अर्जुन इस युद्ध में बै

बुद्धि योग गीता भाग - 02

श्रीमद भगवद्गीता क्या है ? धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र में कौरव - पांडव की सेनाओं के मध्य प्रभु श्री कृष्ण एवं उनके मित्र अर्जुन के मध्य जो बांते हुयी हैं उनसे जो कर्म - योग एवं ज्ञान - योग की गणित तैयार होती है , उसका नाम है , श्रीमद भगवद्गीता । Prof. Einstein Says ----- When I read Bhagwadgita and reflect about how God created universe, everything else seems so superfluous . गीता में कुल चार पात्र हैं ; प्रभु कृष्ण , अर्जुन , धृतराष्ट्र एवं संजय । प्रभु एवं अर्जुन के मध्य जो बातें हो रही हैं उनको धृतराष्ट्र को सूना रहे हैं , संजय और संजय जो कहते हैं वह आज हम सब को गीता के रूप में उपलब्ध है । यहाँ गीता में दो सुननें वाले हैं और दो ही सुनानें वाले । अर्जुन प्रभु के संग हैं , प्रभु उनके रथ के सारथी हैं लेकीन श्री कृष्ण में ब्रह्म अर्जुन को नहीं दिख रहा पर संजय जो श्री कृष्ण से कुछ दूरी पर हैं उनको साकार श्री कृष्ण में निराकार कृष्ण स्पष्ट रूप से दिख रहे हैं । प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन को युद्ध पूर्व मूह रहित करनें के लिए सांख्य - योग का जो उपदेश दिया उसे अर्जुन भ्रमित मन - बुद्धि से पकड़ने

बुद्धि - योग गीता भाग - 01

भूमिका बुद्धि योग गीता के नाम से गीता के अठ्ठारह अध्यायों की यात्रा प्रारम्भ की जा रही है , आप सादर आमंत्रित हैं । यहाँ गीता के प्रत्येक अध्याय से केवल उन श्लोकों को लिया जाएगा जो सीधे बुद्धि पर हथौड़ा मारते हैं । तर्क - वितर्क के केंद्र को बुद्धि कहते हैं और यहाँ आप को गीता के उन श्लोकों को पायेंगे जो आप की बुद्धि में एक नहीं अनेक तर्क - वितर्क पैदा करनें में समर्थ हैं । बुद्धि एक ऐसा तत्त्व है जो विकार से निर्विकार में पहुंचा सकती है और स्वयं स्थिर हो कर मन के ऊपर अंकुश लगा सकती है । प्रभु का मार्ग है आस्था से और विज्ञान का मार्ग है तर्क से । आस्था समर्पण से है और तर्क की जड़ संदेह से निकलती है , जितना गहरा संदेह होगा उठाना गहरा विज्ञान निकलनें की संभावना होती है लेकीन संदेह के साथ प्रभु से जुड़ना असंभव होता है । संदेह से नफरत न करो , संदेह को समझो और जब संदेह के प्रति होश बनेगा तब संदेह श्रद्धा में स्वयं ढल जाएगा । बीसवी सताब्दी के प्रारम्भ में आइन्स्टाइन के पास क्या था जिसके आधार पर वे अपनें थिअरी आफ रिलेटिविटी को सिद्ध करते ? लेकीन उनकी आस्था इतनी मजबूत थी कोई उनके सामनें रुक न पा

गीता अमृत - 100

गीता सत का बीज बाटता है वैयानिकों एवं इतिहास कारों की राय है की गीता का समय 5561 वर्ष इशापुर्व से 800 वर्ष इशापुर्व का रहा होगा । गीता के इतिहास में उलझनें से किसी सत की प्राप्ति करना संभव नहीं क्योंकि उलझन संदेह के कारन होती है । संदेह अज्ञान की छाया है और समर्पण में सत की छाया दिखती है । गीता हजारों सालों से सत का बीज बिखेर रहा है लेकीन लेनें वाले कुछ कंजूस दीखते हैं । गीता हर हिन्दू परिवार में मिलता है लेकीन लोग इसको तब पढ़ते हैं जब घर में कोई आखिरी श्वास भर रहा हो । लोगों का विचार है की गीता सुनते हुए मरनें वाले को स्वर्ग मिलता है । हिन्दू परिवार में शायद ही कोई ऐसा ब्यक्ति मरता हो जिसको गंगा जल न पिलाया जाता हो और गीता न सुनाया जाता हो । वह जो मौत के भय से कोमा में है , जो मौत से लड़ रहा है, जो मरना नहीं चाहता और मौत उसे छोड़ना नहीं चाहती , क्या गंगा - जल पी कर और गीता सुन कर स्वर्ग में जगह पा सकता है ? गीता सुननें वाला क्या स्वर्ग में जाएगा या क्या परम धाम पायेगा ? यह कहना कठिन है लेकीन गीता की राह पर जो जिया हो उसे परमं धाम मिलता है, यह ध्रुव सत्य जरुर है । परम श्री कृष्ण के

गीता अमृत - 99

अंधों की बस्ती में चिराग बेचनें वाले ----- जिस समय श्री राम - श्री कृष्ण रहे होंगे वे दिन कैसे थे ? इस का अंदाजा लगाना तो कुछ कठिन सा लगता है लेकीन आज का समय कैसा है क्या कभीं मन में इस बात की सोच भी उठती है ? आज आये दिन नए - नए योगी , साधू , बैरागी , संन्यासी , पंथ , दर्शन , शास्त्र , मंदीर और आश्रम देखनें को मिलते हैं , यदि कोई किसी और लोक से पृथ्वी पर आये और धर्म के फैलाव के साधनों को देखे तो उनके मन में कैसा भाव उठेगा ? एक महान ध्यान गुरु अपनें उपदेश में एक बार कहे हैं ------- महाबीर और बुद्ध बैलगाड़ी - युग के ध्यानी थे लेकीन हमारे ध्यानी सबसे महंगी गाड़ियों के मालिक हैं । बुद्ध और महाबीर दोनों सम्राट थे , दोनों को जब पराम प्रीति की लहर लगी तब दोनों महल छोड़ कर जंगल की शरण में सत की खोज के लिए गए और आज लोग पांच सितारे आश्रमों में जा रहे हैं जहां अति आधुनिक भोग साधन उपलब्ध हैं , वह भी किफायती दर पर । मैं एक दर्शन शास्त्री की किताब पढ़ रहा था , एक जगह उनका कहना था ------ मैं इस पुरानें तथ्य को गलत साबित कर दिया की निर्वाण प्राप्त योगी काम से दूर हो जाता है । आज लोग ऐसे सन्यासीयों को चाह

गीता अमृत - 98

भोग - ऊर्जा भोग - ऊर्जा क्या है ? वह ऊर्जा जिससे ....... काम , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय एवं आलस्य पैदा हो , भोग ऊर्जा है । भोग ऊर्जा को यदि ग्राफ पेपर पर उतारा जाए तो जो चित्र बनेगा वह साइन करब [ sign curve ] होगा । साइन करव में उतार - चढ़ाव बराबर - बराबर होते हैं और भोग - ऊर्जा में सुख - दुःख आवागमन भी कुछ साइन करव की तरह ही होता है । भोग ऊर्जा में तू और मैं का गहरा सम्बन्ध होता है , अहंकार का प्रभाव भी गहरा ही होता है । भोग ऊर्जा में खोनें की गुंजाइश जब नज़र आती है तब क्रोध आता है और कामना टूटनें के साथ भी क्रोध ही पैदा होता है । भोग ऊर्जा में समर्पण दिखावे का होता है जो मोह के कारण होता है। भोग ऊर्जा अपना रंग बदलती रहती है । भोग ऊर्जा कभी - कभी योग ऊर्जा की तरह अपना रूप - रंग दिखाती है और ऐसा लगनें लगता है अमुक ब्यक्ति स्वयं प्रभु का अवतार हो । आप सुनें होंगे - रावण सीता को हरने साधू के वेश में आया था । यह जानना की कौन सी ऊर्जा भोग ऊर्जा है और कौन सी ऊर्जा योग ऊर्जा है , अति कठिन काम है , यह बात केवल उसे पता होती है या पता चल सकती है जो इस से प्रभावित होता है । ===== एक प्