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सांख्य कारिका : 1 - 20 में संचित ज्ञान

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💐  सांख्यकारिका की इस यात्रा में लगभग हम एक तिहाई यात्रा पूरी कर चुके हैं । इस यात्रा में अभीं तक जिन - जिन ज्ञान तत्त्वों से परिचय हुआ , उनको निम्न स्लाइड के माध्यम से दिखाया जा रहा है ।  💐 देखिये , मनन कीजिये और यदि जरुरत पड़े तो पिछले पन्नों को देखने में संकोच न करे ⬇️ ।। ॐ ।।

सांख्य कारिका : 19 - 20

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  💐 कारिका : 19 - 20 पुरुष से सम्बंधित हैं । 👌पुरुष एक पूर्ण निर्गुण चेतन ऊर्जा है जिसकी ऊर्जा से  सगुण जड़ प्रकृति सक्रीय हो जाती है और संर्गों की उत्पत्ति होती है जैसा कारिका : 3 में बताया गया है । 💐 प्रकृति - पुरुष संयोग दो विपरीत ऊर्जाओं का संयोग है । # सांख्य सृष्टि को प्रकृति - पुरुष संयोग के फल के रूप में देखता है और वेदांत सृष्टि को दो से नहीं एक के फैलाव रूप में देखता है । वेदांत में सृष्टि से सम्बंधित आत्मा , जीबात्म , ब्रह्म , माया और परमात्मा जैसे संबोधन मिलते हैं लेकिन सांख्य में कोई ऐसी ब्यवस्था नहीं , सांख्य की गणित सीधी गणित और संदेहमुक्त गणित है । ◆अब देखते हैं दो स्लाइड्स को ⬇️

सांख्य कारिका : 17 - 18

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  💐 कारिका : 17 - 18 का सम्बन्ध पुरुष से है । 👌 पुरुष को ठीक - ठीक समझना , चेतन को समझना है और चेतन से जड़ को समझना  सरल होता है । 👍 प्रकृति जड़ है , अचेतन है , प्रसवधर्मी है और पुरुष को मोक्ष दिलाने के लिए उसे आकर्षित करती है । पुरुष प्रकृति को देखना चाहता है और इस प्रकार वह प्रकृति के  जुड़ते ही स्वयं को चित्त समझने लगता है ।  💐 ध्यान रखें > कारिका : 17, 18 , 19 और 20 पुरुष को संबोधित करती हैं । और अब देखिये कारिका : 17 - 18 को ।। ॐ ।।

सांख्य कारिका : 15 - 16 हिंदी भाषान्तर

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  💐सांख्य कारिका : 15 - 16 का हिंदी भाषान्तर ⬇️ व्यक्त से अव्यक्त की सोच  👌  अव्यक्त मूल प्रकृति है ( तीन गुणों की साम्यावस्था , निष्क्रिय , जड़ , अति सूक्ष्म , सनातन और कार्य नहीं कारण है ) / 👌व्यक्त वे 23 तत्त्व हैं जो पुरुष ऊर्जा के प्रभाव में मूल प्रकृति से उत्पन्न होते हैं अर्थात महत् , अहँकार , 11 इन्द्रियां , 05 तन्मात्र और 05 महाभूत । ★ कारिका : 15 - 16 में बताया जा रहा है कि अति सूक्ष्म मूल प्रकृति को इंद्रियों से तो पकड़ा नहीं जा सकता लेकिन उससे उत्पन्न 23 तत्त्वों को इंद्रियों से पकड़ा जा सकता है । अतः कार्य से कारण के सम्बन्ध में अनुमान प्रमाण माध्यम से जाना जा सकता है । // ॐ //

सांख्य कारिका : 11 , 12 , 13 के सार कारिका : 14

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  💐 कारिका : 11 , 12 और 13 को हम पिछले अंक में तीन स्लाइड्स के माध्यम से देख चुके हैं लेकिन स्मृति में उन्हें बनाये रखने हेतु एक स्लाइड में इन तीन कारिकाओं के सार को यहाँ दिया जा रहा है जो निम्न प्रकार है 👇 💐 कारिका : 3 में मूूल प्रकृति के सम्बन्ध में बताया गया है और पुरुष ऊर्जा के प्रभाव में जब वह विकृति होती है तब 23 तत्त्वों की उत्पत्ति होती है , उसे भी बताया गया है ।  👌 मूल प्रकृति तीन गुणों का एक माध्यम है जिसे वेदान्त में माया कहते हैं ।  👌 अब कारिका - 14 को निम्न स्लाइड में देखें जहाँ मूल प्रकृति और विकृत प्रकृति से उत्पन्न 23 तत्त्वों के संम्बंध में बताया जा रहा है। कार्य उसे कहते है जो पैदा होता है और कारण पैदा करने वाले तत्त्व को कहते हैं । अब देखिये कारिका : 14 को 👇 💐 अभीं तक कारिका 3 से कारिका - 14 तक में सांख्य के मूल तत्त्व - प्रकृति , पुरुष और तीन गुणों के सम्बन्ध में देखा गया और आगे भी इन्हीं तत्त्वों के सम्बन्ध में देखा जाएगा । 💐याद रखना होगा कि सांख्य सिद्धान्त गणित के सिद्धांत जैसे हैं जिनमें वही तैर सकता है जिसकी बुद्धि निर्मल और पूर्ण सक्रीय ह...

कारिका : 11 , 12 , 13 का सार

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 💐कारिका : 11 , 12 और 13 का सार .... 👌प्रकृति और पुरुष की पहचान और तीन गुणों की वृत्तियों को यहाँ बताया जा रहा है । मूल प्रकृति 03 गुणों ( सात्त्विक , राजस और तामस ) की साम्यावस्था का नाम है जो पुरुष ऊर्जा से अपनीं साम्यावस्था खो कर सक्रिय हो उठती है और फलस्वरूप 23 तत्त्वों की उत्पत्ति होती है । ये 23 तत्त्व सृष्टि रचना के सर्ग हैं । 💐अगले अंक में कारिका : 11 , 12 और 13 का संक्षिप्त सार दिया जाएगा जिससे स्मरण करना सरल हो सके। 👌सब 03 स्लाइड्स को देखे 👇

सांख्य कारिका : 1 - 10 सार भाग - 3

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  💐 सांख्य कारिका : 1 - 10 के सार का यह आखिरी भाग है। इन 10 कारिकाओं में 03 कारिकाएँ प्रकृति - पुरुष से सम्बंधित हैं । 03 कारिकाओं का सम्बन्ध प्रमाण से है और प्रारंभिक 02 कारिकाओं का सम्बन्ध दुःख और दुःख निवारण से है । कारिका : 3 , 7 और 8 प्रकृति और पुरुष को व्यक्त कर रही है। प्रकृति के लिए सांख्य कारिका : 3 कहती है , " 03 हूणों की साम्यावस्था को मूल प्रकृति या अव्यक्त कहते हैं जो सनातन अविकृत , अनादि ,  त्रिगुणी और किसी से उत्पन नहीं है । पुरुष गुणातीत , सनातन और चेतन है । 💐 सांख्य दर्शन कोई मनोरंजन का साधन नहीं , यह बुद्धि योग का सागर है जिसके प्रमुख मात्र 02 तत्त्व हैं - प्रकृति और पुरुष। 💐 प्रकृति - पुरुष के संयोग की भूमि है चित्त जो पुरुष ओरभाव के कारण प्रकृति से उत्पन्न होता है और जिसे अंतःकरण ( मन + बुद्धि +अहँकार ) भी कहते हैं । 👌अब देखते हैं स्लाइड - 3 👇