सबसे पहला जीव कैसे विकसित हुआ ?

श्रीमद्भागवत पुराण के  स्कन्ध : 2 , स्कन्ध : 3 और स्कन्ध : 11 के अंतर्गत क्रमशः ब्रह्माजी , ऋषि मैत्रेय एवं कपिल मुनि तथा प्रभु श्री कृष्ण जीव विकास - सिद्धान्त को अपनें - अपनें ढंग से स्पष्ट किये हैं।
श्रीमद्भागवत पुराण में यह भी लिखा है कि कब यदुकुल का संहार हो रहा था , उस समय प्रभु श्री कृष्ण के साथ हरिद्वार के पास आश्रम वाले ऋषि मैत्रेय जी भी उपस्थित थे । उस समय प्रभु अपनें गरुण रथ आने की प्रतीक्षा कर रहे थे और उद्धव को तत्त्व ज्ञान भी दे रहे थे । जब प्रभु स्वधाम जानें को हुए , उस समय उद्धव को आदेश दिए कि उद्धव अब तुम अपनें शेष समय को बदरी बन में जा कर गुजारना । मैत्रेय जी को कहे कि हे ऋषि ! जो जिवन मैं उद्धव को दिया है , आप उस ज्ञान को विदुर को देना । 
इस प्रकार मैत्रेय और प्रभु श्री कृष्ण के जीव विकास सिद्धान्त एक होनें चाहिए पर ऐसा है नहीं !
दूसरी बात श्रीमद्भागवत में सोचने योग्य है कि कपिल मुनि जीव विकास के संबंध में अपनीं माता देवहूति को भागवत स्कन्ध : 3 में बताये हैं और उसी ज्ञान को सांख्यकारिका में भी दिया गया है जो की कपिल - सांख्य दर्शन की एक प्राचीनतम ग्रन्थ है तथा इसके सम्बन्ध में आदि शंकराचार्य जी भी अपनें विचार व्यक्त किये हैं । 
भागवत और सांख्यकारिका के अंतर्गत जो सिद्धान्त कपिल जी के दिए गए हैं , उनमें समानता नहीं हैं ।
बुनियादी तौर पर मैत्रेय , कृष्ण  कपिल के दिद्धांतों में यह माना गया है कि ...
पहले तन्मात्रों की उत्पत्ति हुयी और तन्मात्रों से उनके अपनें - अपने महाभूतों उत्पत्ति हुई।
~~शेष अगले अंक में ~~

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