गीता में दो पल - 4

1- कामना , क्रोध , लोभ और मोह का गहरा सम्बन्ध है अहंकार से ।
2- अहंकार कामना , क्रोध , लोभ और मोह का प्राण है , ऐसा कहना अतिशयोक्ति न होगा ।
3- कामना , क्रोध , लोभ और मोह ये भोग की रस्सियाँ हैं जिनमें मोह रस्सी की लम्बाई सबसे अधिक होती है और मोटाई सबसे कम ।
4- मोह तामस गुण का तत्त्व है और तामस गुण के प्रभावी होनें पर जब किसी की मौत होती है तो उसे अगली कीट , पतंग और पशु में से कोई एक योनि मिलती है (गीता - 14.8+14.15 ) ।
5- तुलसी दास कृत रामचरित मानस से ऐसा लगता है कि सम्राट दशरथके प्राण घोर मोह में निकले थे । 6- मोह की दवा सत्संग है ,भागवत ऐसी बात कहता है लेकिन सत्संग में दो होते हैं ; एक सत और दुसरे वे जो सत के जिज्ञासु हैं । सत पुरुष तो पारस होता है पर होता दुर्लभ है । यदि पारस हो भी तो क्या होगा उसके पास जानें से अगर हम लोहा नहीं हैं क्योंकि पारस केवल लोहे को सोना बनता है , गोबरको नहीं । 7- भागवत में कहा गया है कि गंगा पृथ्वी पर उतरनें से पहले एक महत्वपूर्ण बात कही थी कि जब मैं पृथ्वी पर रहूंगी तो लोग अपनें - अपनें पाप धो - धो कर मेरी निर्मलता समाप्त कर देंगे अतः मैं वहाँ नहीं जा सकती । राजा भगीरथ कहते हैं ,आप अपनीं निर्मलता की चिंता न करें ,आपके दोनों तटों पर ऐसे - ऐसे सिद्ध योगी रहा करेंगे जिनके स्पर्श मात्र से आपकी निर्मलता बनी रहेगी ।लेकिन आज गंगा के सम्बन्ध में लोगों का ध्यान किस तरफ केन्द्रित किया जा रहा है ? या तो अब गंगा तट पर सिद्ध योगियोंका अभाव हो गया है या फिर गंगाकी निर्मलता देखनेंकी ज्योति लोगोंके पास न रही ।
8- काम , आसक्ति , कामना , क्रोध और लोभ राजस गुणके तत्त्व हैं और राजस गुण प्रभूकी ओर रुख करनें नहीं देता । प्रभुकी खुशबू अगर लेनी है तो पहले राजस गुण से बाहर निकलो और यह संभव है ध्यान से , यह बात गीता आधारित है ।
9- गीता कहता है - मोह के साथ वैराग्यकी सोच का होना एक भ्रम है ; मोह और वैराग्य एक साथ नहीं रहते । वैराग्य साधनाकी वह आखिरी सीढी है जहाँ से परमात्मा में उड़ान भरी जाती है ।
10- ज्ञान - वैराग्य एक साथ रहते हैं ; वैराग्य राह है और ज्ञान वह चक्षु है जो वैराग्य - राह पर प्रभु को देखती है ।
~~~ हरे कृष्ण ~~~

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