गीता में दो पल ( भाग - 1 )

1- भोग - सम्मोहनकी गहराईको समझना योग है । जबभी हम भोगकी ओर पीठ करना चाहते हैं वह झटसे अपनी ओर रुखको मोड़ लेता है और इस प्रक्रियामें इतना कम समय लगता है कि हम इसके प्रति अनभिज्ञ ही बने रहजाते हैं ।
2- भोगकी वह कौन - कौन सी रस्सियाँ हैं जिनके माध्यम से वह हमें बाध कर रख रक्खा है ?
3- रस्सियाँ तो तीन हैं जिनको तत्त्व - ज्ञानी गुण कहते हैं ; जिनमें से दो देहमें नाभि और उसके नीचे सक्रीय रहते हैं और एक हृदय और हृदयके ऊपर वाले चक्रों पर सक्रीय रहता है जैसे हृदय , कंठ , आज्ञाचक्र और सहस्त्रार ।
4- भोगसे बाधनें वाली मजबूत दो रस्सियों को तत्त्व ज्ञानी राजसगुण और तामसगुण कहते हैं और तीसरी वह रस्सी है जो अहंकारके प्रभाव में भोग से जोडती है अन्यथा वह निर्मल निर्विकार उर्जा के संचारका माध्यम है जिसे कहते हैं , सात्त्विक गुण ।सात्त्विक गुण में पहुँचना वह स्थिति है जो भोग - योगका जोड़ है , जहाँ से पीछे भोगकी ओर मुड़ना अति आसान और आगे निराकार , अब्यक्त और अप्रमेयकी यात्रामें उतरना अति कठिन ।
5- तत्त्व ज्ञानी कृष्ण कहते हैं ( गीता - 14.5 ) : आत्मा देह में तीन गुणों द्वारा बधी है ; जब साधक गुणातीत हो जाता है तब उसके देह में जीवात्मा बंधन मुक्त हो जाती है । गुणातीत योगी स्वेच्छासे देह त्यागता है । परम हंस श्री गुरु रामकृष्ण कहते हैं , गुणातीत एक माह से अधिक समय तक अपनें देहका भार नहीं ढों सकता ।
~~ हरे कृष्ण ~~

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