गीता में महात्मा शब्द

<> गीता - 11.50 + 17.74 <>
 ** गीता - 11.50 में संजय प्रभु कृष्ण केलिए महात्मा शब्द का प्रयोग किया है ।
 ** गीता - 18.74 में संजय अर्जुन को महात्मा शब्द से संबोधित करते हैं ।आइये ! देखते हैं महात्मा शब्द को । 
<> गीता अध्याय - 11 के अंत में ( श्लोक -11.45 से श्कोक 11.55 तक ) अर्जुन प्रभु का चतुर्भुज विष्णु रूप देखना चाहते हैं और जब देख लेते हैं तब प्रभु अपनें सामान्य रूप में आजाते हैं ।प्रभु कहते हैं , हे अर्जुन इस संसार में किसी भी तरह मेरे इस रूप को कोई नहीं देख सकता जिस रूप को तूँ देख रहा है। प्रभु इतना कह कर अपनें सामान्य रूप में आजाते हैं । संजय भी प्रभु के चतुर्भुज स्वरुप को देखते हैं और चतुर्भुज स्वरुप देखनें के साथ प्रभको महात्मा शब्दसे संबोधित करते हैं अर्थात महात्मा शब्द विष्णुका संबोधन है।
 ** गीता अध्याय - 18 के अंत में प्रभु अर्जुन से पूछते हैं , हे अर्जुन क्या शांत मन से मेरे संबाद को सुना और क्या तुम्हारा अज्ञान जनित मोह समाप्त हुआ ( गीता - 18.72 ) ? प्रभु की इस बात पर अर्जुन कहते हैं ( गीता - 18.73 ) आप की कृपा से मेरा मोह समाप्त गो गया है , मैं अपनी खोई हुयी स्मृति को पाप्त कर लिया है और अब मैं स्थिर हूँ तथा आपकी आज्ञाका पालन करूँगा ।यहाँ गीता में अर्जुन और कृष्ण संबाद समाप्त होता है और श्लोक 18.74 से श्लोक - 18.78 तक संजय बोलते हैं । संजय अर्जुन को महात्मा शब्द से संबोधित करते हुए कहते हैं ( गीता -18.74 ) , इस प्रकार मैं श्री वासुदेव और महात्मा अर्जुन के संबाद को सूना है ।
 ** क्या है महात्मा शब्द ? 
 महात्मा अनेक नहीं एक है जो अप्रमेय , सनातन , अब्यय और अपरिमेय है । परमात्मा से परमात्मा में प्रकृति है जो काल रूप प्रभु ( महात्मा ) के प्रभाव में रूपांतरित होती रहती है ।महात्मा शब्द प्रभुका ही संबोधन है । अर्जुनजब गीता में प्रभु के 574 श्लोकों को सुनकर स्थिर प्रज्ञ हो जाते हैं तब संजय उन्हें महात्मा शब्द से संबोधित कर रहे हैं ।
 ~~~ हरे कृष्ण ~~~

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