गीता अध्याय - 13 भाग - 12

गीता श्लोक - 13.19

प्रकृतिम् पुरुषं च एव विद्धि अनादि उभौ अपि / 
विकारान् च गुणान् च एव विद्धि प्रकृतिसंभवान् //

" प्रकृति और पुरुष अनादि हैं , सभीं विकार एवं गुण प्रकृति से हैं "

" Prakriti and Purush [ nature and consciousness ] both are beginningless and eternal and three natural modes and their elements are from the nature . "

प्रकृति और पुरुष क्या हैं ?

ये दो शब्द सांख्ययोग की बुनियाद हैं और सांख्ययोग गीता में प्रयोग तो किया गया है लेकिन उसके दर्शन को बदला गया है / गीता में प्रकृति दो प्रकार की हैं ; अपरा और परा / अपरा के आठ तत्त्व है ; पञ्च महाभूत , मन , बुद्धि एवं अहँकार और परा को चेतना कहते हैं / सभी चर - अचर इन दो प्रकृतियों से हैं / गीता का पुरुष एक नहीं दो हैं ; एक क्षर और दूसरा अक्षर [ श्लोक - 15.16 ] / क्षर पुरुष , है देह और अक्षर पुरुष है,  इसमें रहने वाली देही अर्थात प्रभु के अंश रूप में जीवात्मा / गीता में महेश्वर , परमेश्वर , ईश्वर , ब्रह्म और पुरुष इन सब शब्दों की एक परिभाषा दी गयी है और वह है,  श्री कृष्ण ही  निराकार रूप में पुरुष , आत्मा , जीवात्मा , परमेश्वर , ईश्वर हैं / 

तीन गुण प्रभु से हैं और इन गुणों के भाव , ये गुण प्रभु श्री कृष्ण में नहीं अर्थात प्रभु श्री कृष्ण निर्गुणी
 भावातीत हैं / तीन गुणों के माध्यम  को माया कहते हैं , माया से माया में दो प्रकृतियाँ हैं जो संसार की सूचनाओं का निर्माण करती हैं और सभी सूचनाएं अंत में प्रकृति में ही मिल जाती हैं / 

=== ओम् =====

Comments

Popular posts from this blog

क्या सिद्ध योगी को खोजना पड़ता है ?

पराभक्ति एक माध्यम है

गीतामें स्वर्ग,यज्ञ, कर्म सम्बन्ध