गीता के कृष्ण में डूबो

गीता में प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं ------
[ क ]
इन्द्रियाणाम् मनश्चास्मि ..... गीता - 10.22
अर्थात
इंद्रियों में मन मैं हूँ //
और यहाँ कह रहे हैं ----------------------
तु ये इन्द्रियग्रामम् सन्नियम्य अचिन्त्यम्
सर्वत्रगम् च कूतस्थं ध्रुवं अचलम् अब्ययम्
अक्षरं पर्युपासते ते सर्वभूतहिते रताः
सर्वत्र समबुद्धयः माम् एव प्राप्नुवन्ति ........ गीता - 12.3 - 12.4
अर्थात
अचिंत्य , सर्व्यापी , समभाव , अब्यय , अब्यक्त , अक्षर परम ब्रह्म की अनुभूति मन बुद्धि से परे की होती है //
अब सोचिये -----
मैं ही मन बुद्धि हूँ मेरे अधीन परम ब्रह्म है [ गीता - 14.3 - 14.4 ] और ब्रह्म की अनुभूति मन - बुद्धि से परे की है / प्रभु और आगे यह भी कह रहे हैं कि ....
गीता - 7.10
बुद्धिः बुद्धिमताम् अस्मि //
बुद्धिमानों में बुद्धि मैं हूँ
==== ओम् ======

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