गीता में आसक्ति कामना एवं ज्ञान सम्बन्ध

गीता श्लोक –4.19

यस्य सर्वे समारम्भाः कामसंकल्पवर्जिताः /

ज्ञानाग्निदग्धकर्माणम् तमाहु : पण्डितं बुधाः /

जिसके सभीं कर्म बिना कामना - संकल्प होते हैं , जिसके सभी कर्म ज्ञान रूप अग्नि में भष्म हो गए होते हैं उस महापुरुष को ज्ञानी जन पंडित की संज्ञा देते हैं //

इस श्लोक को ऐसे देखें -------

पंडित , बुध पुरुष एवं ज्ञानी एक ब्यक्ति के संबोधन हैं जिसके सभीं कर्म बिना कामना एवं संकल्प के होते हैं

अर्थात----

कामना- संकल्प रहित कर्म ही कर्म योग है जिसका फल है ज्ञान

Actions without desire and determination lead to Karma – Yoga which leads to wisdom .

आप यहाँ गीता श्लोक – 18.49 , 18.50 को भी देखें जो इस प्रकार हैं ------

असक्तः बुद्धिः सर्वत्र जीतात्मा विगतस्पृह :

नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां संन्यासेनाधिगच्छति

आसक्ति रहित कर्म से नैष्कर्म्य सिद्धि मिलती है

Action having no attachment leads to perfection of Karma – Yoga

सिद्धि प्राप्तो यथा ब्रह्म तथाप्नोति निबोध में

समासेनैव कौन्तेय निष्ठा ज्ञानस्य या परा

नैष्कर्म – सिद्धि ही ज्ञान – योग की परा निष्ठा है

The perfection of Action – Yoga germinates awareness which is the ultimate wisdom .

गीत के तीन श्लोक कह रहे हैं-----

जो कर्म तुम कर रहे हो करते रहो,भागो नहीं,उनमें जागो,कर्म में कर्म बंधनों की समझ ही जागना है और जब तुम्हारे सभीं कर्म बंधन मुक्त होनें लगेगे तब तुम उन कर्मों का द्रष्टा बन गए

होगे/द्रष्टा कर्म में अकर्म एवं अकर्म में कर्म देखता हुआ परम ज्ञान में होता है//



=====ओम्======


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