कामना , क्रोध एवं अहंकार गीता में

गीता सूत्र –18.2

काम्यानां कर्मणां न्यासं संन्यासं कवयो विदु : /

सर्व कर्म फल त्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणाः //

शब्दार्थ ------

पंडित जन काम से सम्बंधित कर्मों ए त्याग को संन्यास समझते हैं अन्य विचारक सभीं कर्मों के फल के त्याग को त्याग समझते हैं /

भावार्थ--------

संन्यासी के कर्म कामना रहित होते हैं

Action of a steadfast devotee is always without desires

गीता सूत्र –18.54

ब्रह्मभूतः प्रसन्न आत्मा न शोचति न काङ्क्षति /

समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिम् लभते पराम् //

शब्दार्थ ---------

ब्रह्म भूत प्रसन्नात्मा न सोचता हा न उम्मीद करता है , वह समभाव में मेरी परम भक्ति में डूबा रहता है

भावार्थ------

पराभक्त कामना रहित होता है

Steadfast devotee is always without desires

मैं अपने सीमीत अनुभव के आधार पर इन दो सूत्रों का जो अर्थ एवं भाव समझ सका हूँ उनको आप को सेवार्पित कर रहा हूँ , यदि कोई भूल – चूक हो गयी हो तो आप मुझे क्षमा करें //

=====ओम्=====



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