अर्जुन का प्रश्न- 8 , भाग- 2

अर्जुन के प्रश्न - 8 का उत्तर तो प्रथम भाग में मिल चुका है लेकिन प्रश्न एवं उत्तर के रूप में हम यहाँ पूरी गीता देखनें जा रहे हैं अतः इस प्रश्न से सम्बंधित 76 श्लोकों [ श्लोक 8.3---10.16 तक ] को देखेंगे ।
यहाँ इस अंक में हम श्लोक 8.6--8.15 तक को ले रहे हैं । गीता के इन दस श्लोकों में दो बातें प्रमुख हैं ; आत्मा का नया शरीर धारण करना एवं प्राण छोड़ते समय की ध्यान-विधि ।
श्लोक 8.6 , 15.8 : ये दो श्लोक कहते हैं ---आत्मा जब शरीर छोड़ कर गमन करता है तब इसके संग मन भी रहता है और मन में संग्रह की गयी सभी अतृप्त कामनाएं आत्मा को वैसा शरीर धारण करनें के लिए
विवश करती हैं जैसा शरीर उनको चाहिए । गीता कहता है ......आखिरी श्वाश भरनें से पहले अपनें मन कोपूरी तरह से रिक्त करदो जिस से मोक्ष मिल सके । रिक्त मन-बुद्धि का दूसरा नाम चेतना है जिसका सीधा सम्बन्ध ब्रह्म से होता है ।
श्लोक 8.12--8.13 : इन दो सूत्रों के माध्यम से गीता उस ध्यान-विधि को बता रहा है जीसको स्थिर बुद्धि
वाला योगी अंत समय में करता है । जो यहाँ ध्यान-विधि दी जा रही है वैसा ध्यान जैन परम्परा में
भी है तथा तिबत में इसको बार्दो-ध्यान कहते हैं । यह विधि इशावत्स्य उपनिषद में भी देखा जा सकता है।
श्री कृष्ण यहाँ कहते हैं ----मन को ह्रदय में स्थापित करो , प्राण-ऊर्जा को धीरे-धीरे तीसरी आँख पर सरकाओ और ॐ ध्वनी को ऐसे गुनगुनाओ की शरीर के कण-कण से ॐ ध्वनी गूंजनें लगे । ध्यान रखनें की बात यहाँ यह है की यह ध्यान - विधि स्थूल विधि नहीं है , यह भावना आधारित है अतः जबतक भावात्मक रूप से ॐ के माध्यम से प्रभू मय नही हुआ जा
सकता तबतक यह ध्यान फलित नही हो सकता ।
====ॐ======

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