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श्रीमद्भागवत पुराण में ऋषि मैत्रेय का तत्त्व ज्ञान

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  भागवत पुराण में ब्रह्मा , मैत्रेय , कपिल मुनि और प्रभु श्री कृष्ण द्वारा सांख्य दर्शन के तत्त्व ज्ञान अर्थात प्रकृति - पुरुष , प्रकृति - पुरुष संयोग से सृष्टि - रचना को प्रस्तुत किया गया है ।  💐 इनमें से ब्रह्मा का तत्त्व ज्ञान पिछले अंक में दिया गया और आज आप मैत्रेय ऋषि के तत्त्व ज्ञान को दो स्लाइड्स के माध्यम से देख रहे हैं । मैत्रेय ऋषि का आश्रम गंगा द्वार ( आजका हरिद्वार ) गंगा के तट पर हुआ करता था । जब प्रभु श्री कृष्ण प्रभास क्षेत्र (आजका सौराष्ट्र ) में सागर तट पर सरस्वती के तट पर उद्धव को तत्त्व ज्ञान दे रहे थे , उस समय उनके साथ वहां मैत्रेय ऋषि भी थे। द्वारका सागर में लीन होने को है , यदुबंशी आपस में लड़ कर स्वर्ग सिधारते जा रहे हैं और प्रभु  अपनें गरुड़ रथ का इंज़ार स्वधाम जाने के किये कर रहे हैं , ऐसे समय में प्रभु उद्धव को तत्त्व ज्ञान दे रहे हैं । यहाँ प्रभास क्षेत्र का दृश्य थीक कुरुक्षेत्र के दृश्य जैसा ही है ; कुरुक्षेत्र युद्ध में गीता ज्ञान था और यहाँ सांख्य तत्त्व ज्ञान । यहाँ प्रभु मैत्रेय ऋषि को कहते हैं , आपके आश्रम में निकट भविष्य में विदुर जी आनेवाले हैं । आप इस

भागवत पुराण में सांख्य आधारित ब्रह्मा का तत्त्व ज्ञान 1-2-3

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 श्रीमद्भागवत पुराण में सांख्य दर्शन आधारित तत्त्व ज्ञान को यहाँ 03 स्लाइड्स में दिखाया जा रहा है। ब्रह्मा का तत्त्व ज्ञान मैत्रेय , कपिल , प्रभु श्री कृष्ण के तत्त्व ज्ञानों से भिन्न है । यहाँ महाभूतों से उनके तन्मात्रों की उत्पत्ति दिखाई गयी है और एक महाभूत दूसरे महाभूत को जन्म देता हुआ दिखाया गया है जो अन्यों से भिन्न है । आगे चल कर अन्य सत् पुरुषों के तत्त्व ज्ञानों को भी देखा जा सकता है । अब स्लाइड्स को देखें ⬇️ 7

श्रीमद्भागवत पुराण में सांख्य भाग - 2

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 श्रीमद्भागवत पुराण में सांख्य भाग - 1 में ब्रह्मा , मैत्रेय , कपिल मुनि ( भागवत में ) कपिल मुनि सांख्य दर्शन में और प्रभु श्री कृष्ण द्वारा व्यक्त सांख्य आधारित सृष्टि विकास सिद्धान्त की एक रूप रेखा दी गई है । इस अंक में सिद्धांतों के प्रसंगों का संक्षिप्त विवरण भी एक तालिका में दिखाया गया है । अब भाग - 2 में ब्रह्मा , मैत्रेय , कपिल (भागवत में ) , कपिल मुनि संख्यदर्शन में और  प्रभु श्री कृष्ण द्वारा व्यक्त तत्त्व ज्ञान को एक जगह एक स्लाइड में ढालने का यत्न किया गया है । आगे चल कर हम इन सिद्धांतों को बिस्तर से अलग - अलग भी देखेंगे । भागवत में ब्रह्मा अपने पुत्र नारद को यह तत्त्व ज्ञान दिए हैं । जब यदुकुलके लोग प्रभास क्षेत्र में सागर तट पर आपस में लड़ते हुए स्वर्ग सिधार रहे थे तब सरस्वती तट पर पीपल पेड़ के नीचे बैठे प्रभु श्री कृष्ण उद्धव जी को मैत्रेय ऋषि की उपस्थिति में सांख्य तत्त्व ज्ञान को दिए थे । उद्धव - कृष्ण वार्ता भागवत में 11.7 - 12.29 में 1030 श्लोकों में दी गई है जिसमें भागवत - 11.24 ,  सांख्ययोग है । प्रभु श्रीकृष्ण मैत्रेय ऋषि को कह रहे हैं , निकट भविष्यमें गंगा द्वार स्थ

श्रीमद्भागवत पुराण में सांख्य भाग - 01

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  श्रीमद्भगवद्गीता में सांख्य सम्बंधित 18 श्लोकों को देखने के बाद अब हम श्रीमद्भागवत पुराण के 18,000 श्लोकों में से उन - उन सन्दर्भों को एकत्रित करने का प्रयश कर रहे हैं जिनका सीधा संबंध सर्ग उत्पत्ति या सृष्टि विकास या तत्त्व ज्ञान से सम्बन्ध है । यहाँ भाग - 01 में एक तालिका में श्रीमद्भागवत पुराण में  ब्रह्मा , ऋषि मैत्रेय , कपिल मुनि और प्रभु श्री कृष्ण द्वारा सांख्य योग सम्बंधित सन्दर्भों को दिखा रहे हैं । इन सत् पुरुषों द्वारा व्यक्त सांख्य योग विस्तार को आगे के अंकों में देखा जा सकता है।

सांख्य आधारित गीता के 18 श्लोकों का आखिरी भाग

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  श्रीमद्भगवद्गीता के 18 सांख्य आधारित श्लोकों की शृंखला का आखिरी भाग आज यहाँ निम्न स्लाइड के माध्यम से दिया जा रहा है । भारतीय हम लोगों की मानसिकता पिजड़े में बंद है ; हजारों लाखों लोगों में कोई एक उसे आज़ाद कराने की जिज्ञासा रखता है । इन जिज्ञासुओं में कोई विड़ला उसे आज़ाद कराने का यत्न कराता है और उन में से कोई कदाचित कामयाब भी हो पाता है। पतंजलि योग दर्शन और सांख्य दर्शन कहानियों का दर्शन नहीं , ये शुद्ध सिद्धान्त के दर्शन हैं । बहुत कम लोग हैं जो इन पर अपनी दृष्टि टिका पाते हैं और उनमें से सफल हुए , माया आवरण के परे हो जाते हैं और उसे देखमें की दृष्टि पा लेते हैं जिसके दर्शनार्थ माया ( प्रकृति ) का अस्तित्व बना हुआ है। आइये घडी दो घडी इस स्लाइड पर चित्त को रोकने की कोशिश करते हैं ⏬

गीता में 18 सांख्य आधारित श्लोक भाग 2 - 3

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 यहाँ हम और आप 72 सांख्य कारिकाओं की यात्रा पूरी करने के बाद अब गीता - यात्रा की अलमस्ती में हैं । कई माह पहले जब सांख्य दर्शन की 72 कारिकाओं को प्रस्तुत किया जा रहा था तब यह बात कही गयी थी कि बिना सांख्य दर्शन - कारिकाओं को समझे गीता , भागवत एवं अन्य धार्मिक ग्रंथों में दिए गए सृष्टि - विकास सिद्धान्त को ठीक - ठीक नहीं समझा जा सकता । ज्ञान वह जो अपने में पूर्ण हो अर्थात जिसको ग्रहण करने पर किसी प्रकार का संदेह - भ्रम नहीं उपजा चाहिए और अंतःकरण में एक शब्दातीत आनंद की अनुभूति होनी चाहिए । इस बुनियादी सिद्धान्त के आधार और हम गीता के ऐसे श्लोकों को पहले ले रहे हैं जिनमें या तो सांख्य शब्द आया हुआ है या फिर सांख्य के सिद्धांतों को कुछ बदलाव के साथ प्रस्तुत किया गया है। अब नीचे दी जा रही दो स्लाइड्स पर ध्यान केंद्रित करते हैं और देखते हैं गीता क्या कह रहा है । ⬇️

गीता के 18 श्लोक जो सांख्य दर्शन आधारित हैं भाग - 1

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 सांख्य दर्शन में प्रकृति - पुरुष संयोग  सृष्टि रचना का आधार है । सांख्य की मूल प्रकृति तीन गुणों की साम्यावस्था है जो पुरुष ऊर्जा के ओरबुआव में विकृत हो उठती है और 23 तत्त्वों की उत्पत्ति होती है । 23 तत्त्व और प्रकृति - पुरुष से सृष्टि - विकास होता है । 💐 गीता में अपरा और परा दो प्रकार की प्रकृतियों के संयोग से सृष्टि की उत्पत्ति बतायी जा रही है । अपारा के 08 तत्त्व हैं - पञ्च महाभूत + मन +बुद्धि +अहँकार और चेतना को परा प्रकृति बताया गया है । अभी स्लाइड में 18 श्लोकों में से प्रारंभिक कुछ श्लोकों को देखते हैं