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अष्टांगयोग साधना में ब्रह्मचर्य क्या है ?

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  अष्टांगयोग साधना में ब्रह्मचर्य यम का चौथा अंग है। महर्षि ब्रह्मचर्य के सम्बन्ध में केवल इतना कहते हैं कि   ब्रह्मचर्य में रहने से वीर्य लाभ होता है । देखिये महर्षि के सूत्र को सूत्र के भावार्थ को ।

पतंजलि अष्टांगयोग में अस्तेय क्या है ?

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  पतंजलि अष्टांगयोग के पहले अंग यम का तीसरा तत्त्व अस्तेय👇 👌अस्तेय का भाव है तन , मन और बुद्धि स्तर पर चोरी सम्बंधित भाव का निर्मूल हो जाना । 👉त् चोरी करना , चोरी करवाना , चोर के समर्थन के पक्ष में सोचने जैसे भाव का अंतःकरण से निर्मूल करानें का अभ्यास अस्तेय साधना है। 👉पतंजलि अपनें अष्टांगयीग के आठ अंगों में यम को पहला स्थान देते हैं । यम का अर्थ होता है अभ्यास करना । अष्टांगयोग का दूसरा अंग है नियम । नियमके 05 अंगों के पालन करनें का अभ्यास करना होता है । अस्तेय साधना के बाद ब्रह्मचर्य साधना और अपरिग्रह की साधना का स्थान है । 👌यम - नियम साधना की सिद्धि मिलने पर अष्टांगयोग के तीसरे अंग आसन की सिद्धि करनी होती है । 🐧परम सत्यको देखने की ऊर्जा प्राप्त करने की यात्रा का नाम है , अस्तेय । //ॐ //

पतंजलि अष्टांगयोग में सत्य की परिभाषा

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  योग - परिचय के सम्बन्ध में यह 28 वां अंक है । यहाँ हम पतंजलि अष्टांगयोग के पहले अंग के दूसरे तत्त्व सत्य की परिभाषा को देख रहे हैं । पतंजलि समाधि पाद सूत्र : 36 में कह रहे हैं कि सत्य में प्रतिष्ठित क्रिया - फल का आश्रय होता है अर्थात ऐसा योगी कर्म करने से पहले उस कर्म के फल को देख लेता है। अब देखते हैं निम्न स्लाइड को 👇

पतंजलि योगसूत्र में अहिंसा क्या है ?

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योग क्या है ? का यह 27 वां अंक है । यहाँ हम अष्टांगयोग के पहले अंग यम के पहले तत्त्व अहिंसा को पतंजलि योग सूत्र के आधार पर समझ रहे हैं ।

योग क्या है ? भाग : 26 , अष्टांगयोग में यम - नियम

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  योग क्या है ? भाग : 26  अष्टांगयोग के अंग यम - नियम क्रमशः योग क्या है ? इस श्रंखला के अंतर्गत सातवें प्रकार के योग अष्टांग योग को हम यहाँ समझ रहे हैं । अष्टांगयोगके 08 अंगों में प्रथम दो अंग क्रमशः यम और नियम हैं।  यम अर्थात अभ्यास करनें के तत्त्व और नियम अर्थात पालन करने के तत्त्व । श्रीमद्भगवद्गीत में प्रवेश करने से पहले प्रकृति - पुरुष रहस्य को समझना आवश्यक है और प्रकृति - पुरुष रहस्य के लिए सांख्य योग की 72 कारिकाओं को समझना पड़ेगा ही तथा सांख्य सिद्धांतोंकी गूढ़ता को बिना पतंजलि योग सूत्रों को समझे , संभव नहीं अतः पतंजलिके 195 सूत्रों को ठीक - ठीक  समझना भी जरुरी है ।  गीता तत्त्व ज्ञान के अंतर्गत गीता में प्रवेश से पहले पतंजलि और सांख्य को हम समझना चाह रहे हैं ।  आइये ! अब हम यम - नियम के अगले अंक को देखते हैं⬇️

पतंजलि योग : अष्टांगयोग : यम - नियम -2

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  योग क्या है ? भाग - 25 के अंतर्गत आज हम यम - नियम साधना अभ्यास के अंतर्गत व्रत और महाव्रत को पतंजलि के शब्दों में समझने का प्रयत्न कर रहे हैं । देखते हैं निम्न स्लाइड को ⬇️

पतंजलि अष्टांगयोग में यम - नियम

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  कपिल मुनि सांख्य दर्शन में सत्य - बोध के लिए जो द्वैत्य वाद का सिद्धांत देते हैं , उसे प्राप्त करने के लिए  द्वैत्य वादी पतंजलि बहुत सुंदर ,संदेह - भ्रम मुक्त निष्कण्टक ऐसा मार्ग दिखाते हैं जिससे परम सत्यकी अनुभूति संभव ही सकती है । प्रकृति - पुरुष इन दो सनातन शक्तियों के योग और प्रभु प्रकाश से सृष्टि है और प्रकृति को भोग कर पुरुष किस प्रकार से पुनः अपने मूल स्वभाव में लौट आता है , को पतंजलि बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत करते हैं । आइये ! देखते हैं , इस अष्टांगयोग श्रंखला जा अगला अंक⬇️