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ध्यान संकेत 18

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टाइम स्पेस से पूर्व क्या था

गीता में दो पल - 20

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गीता में दो पल - 19

1- भागवत : 4.22 > धन एवं बिषयका चिंतन पुरुषार्थका नाशक है और ज्ञान - विज्ञानसे दूर रखता है । 2 - भागवत : 2.1 > एक घडी ज्ञान भरा जीवन भोग भरे 200 सालके जीवनसे अधिक प्रीतिकर होता है । 3- भागवत : 3.36 > साधनसे भक्ति ,भक्तिमें वैराग्य और वैराग्यसे ज्ञानकी प्राप्ति होती है । 4- भागवत : 2.1 > वैराग्य अर्थात गुण तत्त्वों के सम्मोहन से परे का जीवन । 5- भागवत : 6.5 > बिना भोग अनुभव वैराग्य में पहुँचना कठिन है । 6- भागवत : 11.19 > ज्ञान : प्रकृति , पुरुष , अहंकार , महतत्त्व , 11 इन्द्रियाँ ,5 तन्मात्र , 5 महाभूत आदि को समझना ज्ञान है और इन सबके होनें का कारण ब्रह्म है ,ऐसी समझ विज्ञान है । 7- गीता : 13.2 : क्षेत्र - क्षेत्रज्ञका बोध ज्ञान है । 8- गीता : 4.38 > कर्म -योगसे ज्ञानकी प्राप्ति होती है । 9- गीता : 4.10 : ज्ञान वह जो प्रभु में बसेरा बनाए । 10 - गीता : 7.19 > कई जन्मोंकी तपस्याका फल है ज्ञान प्राप्ति । 11- गीता : 7.3 > हजारों लोग ध्यान करते हैं ,उनमें एकाध सिद्धि प्राप्ति करते हैं और सिद्धि प्राप्त लोगों में कोई एक तत्त्व ग्यानी होता है । 12- गीत

गीता में दो पल - 18 - दशांगुल न्याय क्या है ?

# अहँकारके अस्तित्वको दशांगुल न्याय में देखते हैं ।   * दशांगुल न्याय कहता है कि पृथ्वीके चारों तरफ ब्रह्माण्डके 07 आवरण निम्न प्रकार से हैं ।  * 1- पृथ्वी चारों तरफ से पानी घिरी है और पानी पृथ्वी से 10 गूना है । *2- पानीके चारों तरफ है अग्नि जी पानी से 10 गूना है ।  * 3 - अग्नि अपनें से 10 गूँने वायु से घिरा हुआ है।  * 4 - वायु अपनेंसे 10 गूँने आकाशसे घिरी है।  <> 5- आकाश चारों तरफ से अपनें से 10 गूँनें अहँकार आवरणसे घिरा है ।  ♂ 6 - अहँकार से 20 गूना है महत्तत्त्व का आवरण ।  ♀7 - महत्तत्त्वसे 10गूना है अब्यक्तका आवरण ।  ** अब्यक्तको ही मूल प्रकृति कहते हैं ।  ## यहाँ से अहँकारके सम्बन्ध में सोचा जा सकता है । ~~~ॐ~~~

गीता में दो पल - 17 अहंकार - 1

# अहंकार क्या है ? #  *भागवत : 3.26 में कपिल मुनि द्वारा दी गयी अंतः करणकी परिभाषाको हम पहले देख चुके हैं । कपिल कहते हैं -- बुद्धि ,अहंकार , मन और चित्तको मिला कर अतः करण बनता है । * अंतः करणके एक तत्त्व बुद्धिको हम गीता के माध्यम से देख चुके हैं और अब देखते हैं दूसरे तत्त्व अहंकारको ।  <> अहंकारके प्रभावमें मैं और मेराका भाव हर पल मनुष्यमें गूंजता रहता है ।  <>अहंकारको समझनेंके लिए यहाँ हम दो सन्दर्भोंको देखनें जा रहे हैं --  <> 1 : भागवत में ब्रह्मा ,मैत्रेय ,कपिल और प्रभु कृष्णके तत्त्व -ज्ञान और ---  <> 2 : दशांगुल न्यायके माध्यमसे अहंकरके आकरको भी समझते हैं । <> 1: भागवत : 2.4+2.5+3.5+4.6+3.26+11.24 में 230 श्लोकों में ब्रह्मा ,मैत्रेय , कपिल और प्रभु कृष्ण के तत्व -ज्ञान से हमें निम्न सार मिलता है ।  1.1: माया पर कालका प्रभाव महत्तत्त्व की उत्पत्ति करता  है ।  1.2: महत्तत्त्व पर काल का प्रभाव तीन प्रकार के अहंकारों की उत्पत्ति करता है ।  1.3: सात्विक अहंकार से मन ,राजसअहंकार से प्राण , बुद्धि और इन्द्रियों की उत्पत्ति होती है।  1.4: तामस अहंकार पर क

गीता में दो पल - 16 (अन्तः करण - 1 )

* गीता श्लोक : 6.23 में योगकी परिभाषा - दुःख संयोग वियोगः के रूप में और पतंजलि योग सूत्र में चित्त बृत्ति निरोधः केंरूप में हमनें गीता दो पल - 14 और 15 में देखी ।  * चित्त का हमारे सुख - दुःख की अनुभूतियों से गहरा सम्बन्ध  है । आइये ! चलते हैं ,चित्त के रहस्य को बुद्धि स्तर पर  समझनें ।  * कपिल मुनि ,कर्मद ऋषिके पुत्र अपनीं माँ स्वायम्भुव मनु ( पहले मनु : एक कल्प में 14 मनु होते हैं । इस समय इस कल्पके सातवें मनु श्राद्ध देव जी हैं ) की पुत्री देवहूतिको मोक्ष प्राप्ति हेतु सांख्य -दर्शन में कह रहे हैं :---  भागवत : 3.26.14 : बुद्धि ,अहंकार ,मन और चित्त - इन चार तत्वों से अन्तः करण है । # अन्तः करणको समझनें हेतु हमें इन चार तत्वोंको समझाना होगा लेकिन इसके पहले हम अन्तः करणकी बृत्तियाँ को देखते हैं ।  #* भागवत : 3.26 : कपिल मुनि कहते हैं :---  संकल्प , निश्चय , चिंता और अभिमान ,ये हैं अन्तः करणकी बृत्तियाँ ।  ** अब देखते हैं अन्तः करणके पहले तत्त्व , बुद्धिको ।  * बुद्धिके लिए गीता : 2.41+2.66+7.10 + 18.29 - 18.35 श्लोकोंको देखें ।  * निर्गुण बुद्धि ( गीता : 7.10 ) परमात्मा है [ बुद्ध

गीता में दो पल - 15

गीतामें दो पल -14 में योगकी दो परिभाषाएं देखनेंको मिली ; एक गीता - 6.23 में कृष्णकी जो कहता है ," दुःख संयोगवियोगः योगः " और दूसरी परिभाषा थी पतंजलि - योग सूत्रकी जहाँ पतंजलि कहते हैं ," चित्त बृत्ति निरोधः योगः "। * आइये ! देखते हैं चित्त और दुःखके सम्बन्ध को :------  # दो शब्द दिखते हैं - मन और चित्त । बहुत भ्रम है इन दो शब्दों में । ज्यादातर लोग इन दो शब्दोंको एक दूसरेके पर्यायवाची रूपमें प्रयोग करते हैं ।  * भागवतमें अंतः करणके चार तत्त्व दिए गए हैं - मन , बुद्धि ,अहंकार और चित्त ।  # भागवत : 10.6.42> यहाँ शुकदेव जी कहते हैं , पञ्च महा भूत + पञ्च तन्मात्र + 10इन्द्रियों + पञ्च प्राण +मन और बुद्बिका केंद्र है , चित्त । पांच प्रकार की वायुओं - प्राण वायु + अपान वायु+ ब्यान वायु - उदान वायु और समान वायुको प्राण कहते है ।  << कुछ और जानकारी अगले अंक में >>  ~~~ ॐ ~~~