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●●तत्त्व ज्ञान ●●

●● तत्त्व ज्ञान ●● °1- लिंग शरीर क्या है ? स्थूल देह का पिंड , 05 कर्म इन्द्रियाँ और मन का योग , लिंग शरीर कहलाता है : भागवत - 11.22 °2- महत्तत्त्व क्या है ? 2.1> तीन गुणोंमें ( मायामें ) कालका प्रभाव महत्तत्त्वका निर्माण करता है । भागवत : 3.26 2.2 > महत्तत्त्व और कालसे तीन अहंकार निर्मित होते हैं जिनसे एक जीवके सभीं तत्त्व बनते हैं । भागवत : 2.5 °3- मन का निर्माण कैसे हुआ ? 3.1> सात्त्विक अहंकार और कालसे मन की उत्पत्ति है ।भागवत : 2.5+3.5+3.6+3.25+3.26+3.27 3.2> राजस अहंकार और काल से 10 इन्द्रियाँ + बुद्धि + प्राण की उत्पत्ति हुयी 3.3> ताम अहंकार और कालसे 05 तन्मात्र और 05 महाभूतोंकी उत्पत्ति हुयी 3.4 > 05 महाभूत + 05 तन्मात्र + 11 इन्द्रियाँ + बुद्धि + अहंकार + 03 गुणों से ब्रह्माण्ड और देहके पिंडका निर्माण हुआ 3.5 > ब्रह्माण्ड और जीव विज्ञानमें वायु और आकाश का योगदान महत्वपूर्ण है । प्राकृतिक प्रलयमें वायु पृथ्वीसे गंध लेकर उसे जलमें बदलती है । वायु जलसे उसका गुण रस लेकर अग्नि ( तेज ) में बदलती है । अन्धकार अग्नि से उसका रूप लेकर उसे आकाश में बदल देता

दुःख संयोग वियोगः योगः

●●दुःख संयोग वियोगः योगः●● गीतामें प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं --- " दुःख सयोग वियोगः इति योगः " ये श्री कृष्ण वही हैं जो 11 सालकी उम्र तक मथुरासे नन्द गाँव ,नन्द गाँवसे वृन्दावन और नन्द गाँव से बरसाना तक बासुरिकी धुन और रासको योग का माध्यम बनाया था और महाभारतके समय जब उनकी उम्र 80 साल से ऊपर की रही होगी तब कहते हैं ----- " सिद्धानां कपिलः मुनिः अहम् अस्मि " गीता 10.26 कपिल मुनि सत युगके प्रारंभमें स्वयाम्भुव मनुकी पुत्री देवहूति और कर्मद ऋषिके पुत्र रूप में श्री विष्णु भगवानके पांचवें अवतार के रूप में जन्म लिया था । कर्मद ऋषि विन्दुसरमें 10,000 साल की तपस्या किया था । विन्दुसर अहमदाबाद -उदयपुर मार्ग पर अहमदाबादसे 130 किलो मीटर दूर है जो कभीं तीन तरफसे सरस्वती नदीसे घिरा हुआ क्षेत्र होता था और जिसे सरस्वती जल देती थी ।प्रभु श्री कृष्ण 125 वर्ष की उम्र में यदु कुल का अंत करके अपनें परम धाम की यात्रा की थी । कपिल मुनि अपनी माँ की कैवल्य प्राप्ति की इच्छाको पूरा करनें हेतु उनको सांख्य योगका ज्ञान दिया था । यह योग सत युगके प्रारम्भ में पैदा हुआ और द्वापर के अंत

भागवतकी सृष्टि - प्रलय गणित

●● सृष्टि - प्रलय - सृष्टि ●● °° सन्दर्भ - भागवत :---- 2.5+3.5+3.6+3.25-3.27+11.24+11.25 * ब्रह्मा , मैत्रेय , कपिल और कृष्णके सांख्य तत्त्व ज्ञानका सार :---- ^ माया पर कालका प्रभाव हुआ फलस्वरुप ^ 03 अहंकार उपजे > सात्त्विक अहंकारसे कालके प्रभावसे --- मन + 10 इन्द्रियोंके अधिष्ठाता 10 देवता उपजे   > राजस अहँकारसे कालके प्रभावसे ----- 10 इन्द्रियाँ + बुद्धि + प्राण उपजे > तामस अहंकारसे कालके प्रभावसे ---- ° शब्द उपजा ° शब्दसे आकाश उपजा ° आकाशसे स्पर्श ° स्पर्शसे वायु ° वायुसे रूप ° रूपसे तेज ° तेजसे रस ° रससे जल ° जल से गंध ° गंधसे जल उपजा अर्थात 05 तन्मात्र और 05 बिषय उपजे और जब तत्त्व प्रलय होती है तब ----- * वायु पृथ्वीसे गंध छीन लेती है * पृथ्वी जलमें बदल जाती है # जलका रस वायु ले लेती है # जल अग्निमें बदल जाता है ¢ अँधकार अग्निसे रूप ले लेता है ¢ अग्नि वायुमें वदल जाती है ^ आकाश वायुसे स्पर्श छीनता है ^ वातु आकाशमें विलीन हो जाती है > काल आकाशसे शब्द ले लेता है > आकाश तामस अहंकारमें बदल जाता है * राजस अहंकारमें 10 इन्द्रियाँ , बुद्धि , प्राण विलीन

ध्यान और हम

इंद्रियों का स्वभाव है बिषयों में रमण करना  मन का स्वभाव है इंद्रियों पर भरोषा रखना  बुद्धि मन की भाषा को समझती है  और .. . इन सबको जो उर्जा चलाती है वह है तीन  गुणों की उर्जा  सात्विक , राजस और तामस तीन गुणों का माध्यम का नाम है माया  माया  से माया में यह संसार है  यह संसार मन का विलास है  और  इसके परे का आयाक ब्रह्म का आयाम है जहाँ मनुष्य संसार को ब्रह्म की छाया रूप में देखता है / मन - बुद्धि तंत्र की बृत्तयाँ हैं - जाग्रत , स्वप्न और सुषुप्ति  जाग्रत स्थिति में इन्द्रियाँ अपनें - अपनें बिषयों की तलाश में होती हैं  और   इद्रिय - बिषय संयोग भोग है / स्वप्न में ह्रदय जाग्रत अवस्था के अनुभव को प्राप्त करता है और  सुषुप्ति में इन दोनों के अनुभव की लहरें दिखती हैं  जाग्रत , स्वप्न और सुषुप्ति , इनमें गुण कर्ता होते हैं  और  प्रभु की अनुभूति गुणातीत की स्थिति में ही संभव है   फिर क्या करें ? ध्यानका अभ्यास जब गहरा हो जाता है तब इन तीन आयामों से अलग एक और आयाम उठता  है जिसे कहते हैं तुरीय जहाँ गुणों की छाया भी  नही पड़ती  और  वहाँ  जो होता है वह निर्गुण होता है

ज्ञान - विज्ञान

ज्ञान - विज्ञान श्रीमद्भागवत और गीता के आधार पर ज्ञान और विज्ञान की परिभाषा कुछ इस प्रकार से बनती है : * गीता कहता है : क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध , ज्ञान है । * भागवत कहता है : शुद्ध इन्द्रिय , मन और बुद्धि के सहयोग से जो अनुभव होता है वह ज्ञान है और वह अनुभूति जिससे सबको एक के फैलाव स्वरुप देखा जाय , विज्ञान है । दोनों बातों को आप अपनें ध्यान का विषय बनाएं और कुछ दिन का मनन आप को जहां पहुंचाए वहाँ कुछ ठहरिये और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में अकेले होनें की स्थिति को देखते रहें , आप को जो मिले उसे प्रभु का प्रसाद समझ कर स्वीकारें । यह ज्ञान - विज्ञान का ध्यान आप को इन्द्रियों के माध्यम से मन से गुजार कर बुद्धिसे परिचय कराते हुए जहां पहुंचाएगा वह आयाम होगा  विज्ञान का । ~~~ ॐ ~~~

भागवत स्कन्ध तीन ध्यान - सूत्र

Title :भागवत स्कन्ध तीन ( ध्यानसुत्र ) Content: भागवत स्कन्ध - 03 (ध्यानसुत्र) 1- द्रष्टा - दृश्य का अनुसंधान - उर्जा का नाम माया है 2- संसार में दो प्रकार के लोग सुखी हैं - एक बुद्धिहीन और एक स्थिर बुद्धि ब्यक्ति 3- अनात्म पदार्थ हसीन नहीं हैं जैसा प्रतीत होते हैं 4- बिषयों का रूपांतरण काल का आकार है 5- काल प्रभु की चाल है ( 2.1.33 ) 6- ब्रह्म काल चक्र के घुमने की धुरी है 7- विद्या , दान , तप , सत्य धर्म के चार पद हैं 8- बंधन - मोक्ष का कारण मन है 9- ज्ञान मोक्ष का द्वार है 10- भक्ति , वैराग्य , मन की एकाग्रता से ज्ञान प्रकट होता है और ज्ञान से देह में स्थित क्षेत्रज्ञ का बोध होता है 11- जैसे जल से रस पृथ्वी से गंध को अलग करना संभव नहीं वैसे प्रकृति से पुरुष को अलग करना संभव नहीं 12- असुर प्रभु के तामस भक्त हैं जो प्रभु को अपनें मन में  द्वेष के कारण धारण किये रहते हैं ~~~ ॐ ~~~

गीता अध्याय - 02

Title :गीता अध्याय - 02 Content: >>गीता अध्याय - 02 << (क) श्लोकों की स्थिति :--- संजय : 03 ; 1, 9,10 , कृष्ण : 63 अर्जुन : 06 ; 4,6,7,8,54, –––---------------------- योग > 72 --------------------------- * 2.1> संजय : करुणा में डूबे , ब्याकुल अर्जिन से प्रभु यह बात कही :--- * 2.2,2.3 > प्रभु :यह असमय में मोह कैसा , जो आर्य पुरुषों द्वारा न आचरित है , न स्वर्ग की ओर ले जाने वाला है और न कीर्ति दिला सकता है अतः ह्रदय की दुर्बलता त्याग कर युद्ध के लिए तैयार हो जा । * 2.4 > अर्जुन : भीष्म एवं द्रोणाचार्य के खिलाफ कैसे लडूं , दोनों पूजनीय हैं (सूत्र-1.25अर्जुन का रथ इन दोनों के सामने ही खड़ा है ) । *2.5 > महानुभाव ! गुरुजनों को न मार कर इस लोक में भिक्षा के माध्यम से जीविकोपार्जन करना उत्तम समझता हूँ । गुरुओ को मार कर उनके खून से सने भोग को ही तो भोगना होगा । *2.6 > मुझे कुछ पाया नहीं चल रहा की युद्ध करू या न करू , इन दो में कौन उत्तम है , कौन जीतेगा और कौन हारेगा , कुछ पता नहीं चल पा रहा , धृत राष्ट्र के पुत