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गीता संकेत तीन

गीता संकेत में हम गीता के उन सूत्रों को देख रहे हैं जिनका सम्बन्ध मनुष्य , मृत्यु एवं परमात्मा से है / आइये देखते हैं इस सम्बन्ध में अगला सूत्र क्या कह रहा है ------ गीता सूत्र – 7.30 स – अधिभूत अधिदैवम् माम् स – अधियज्ञम् च ये विदु : / प्रयाण काले अपि च माम् ते विदु : युक्त – चेतसः // वह जो अधिभूत [ समयाधीन बस्तुओं में ] , अधिदैव [ ब्रह्मा के रूप में ] एवं अधियज्ञ [ यज्ञों के मूल रूप में ] मुझे देखता है , वह अंत समय में भी मुझे देखते हुए पूर्ण होश में प्राण त्यागता है और मुझे प्राप्त करता है // यह सूत्र कह रहा है ----- वह जिसका जीवन प्रभु केंद्रित रहा होता है वही अंत समय में भी प्रभु को देखता है // जब कोई आखिरी श्वास भर रहा होता है तब घर के सभीं लोग बहुत ब्यस्त जो जाते हैं . कोई भाग रहा है गंगा जल की खोज में , कोई भाग रहा है तुलसी दल की तलाश में , कोई गीता खोज रहा है और कोई डाक्टर को बुलानें गया होता है यह सुनिश्चित करनें के लिए , अभीं प्राण तन में तो नहीं कहीं अटक रहा / गीता में प्रभु यह नहीं कहते कि वह जिसका जीवन काम ,

गीता संकेत दो

गीता सूत्र – 8.8 अभ्यास – योग युक्तेन चेतसा न अन्य गामिना / परम् पुरुषं दिब्यम् याति पार्थ अनुचिंतयन् // मन में जिसके प्रभु बसते हों वह प्रभु में बसता है // ऊपर के सूत्र का शाब्दिक अर्थ कुछ इस प्रकार से बनाता है ----- जब अभ्यास – योग इतना गहरा हो जाए कि मन – बुद्धि पूर्ण रूप से प्रभु पर स्थिर हो जाएँ तब वह योगी परम् पुरुष को चिंतन के माध्यम से प्राप्त करता है / Through constant regular meditation fully attuned to the Self not wandering anywhere else , he reaches to the space where the realization of the absolute reality happens . ऊपर के सूत्र में अभ्यास – योग युक्तेन पर आप सोचें ; अभ्यास और अभ्यास योग दोनों में क्या फर्क है ? जिस कृत्य के साथ योग शब्द लगता है उस कृत्य में मन चालक नहीं रहता , मन के इशारे पर तन – इन्द्रियाँ नहीं चलती , मन तो मात्र जो हो रहा होता है उसका द्रष्टा बना हुआ रहता है / योग वह साधन है जहां मनुष्य अपनें मन को समझता है और मन में बह रही ऊर्जा को निर्विकार करके जहां पहुचता है उस स्पेस की बात गीता सूत्र – 8.8 में की

गीता संकेत भाग एक

गीता सूत्र – 8.6 यं यं वा अपि स्मरन् भावं त्यजति अन्ते कलेवरम् / तम् तम् एव एति कौन्तेय तत् भाव भावित : // प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन को बता रहे हैं … ..... हे अर्जुन ! मृत्यु के समय मनुष्य जिस भाव में रहता है मृत्यु के बाद का उसका जन्म उस भाव की प्राप्ति के लिए होता है // Lord Krishna says ------ The Supreme Soul goes to that on which its mind remains set at the last moments . पिछले अंक में हमनें देखा जहां प्रभु कहते हैं … ..... आखिरी श्वास भरते समय जो मुझे अपनी स्मृति में रखता है वह मुझे प्राप्त करता है और यहाँ कह रहे हैं , अंत समय मन किस केन्द्र पर स्थिर रहता है उस ब्यक्ति का अगला जीवन भी उसी केंद्र पर केंद्रित रहता है / अब इस सूत्र के सम्बन्ध में कुछ सोचते हैं ------- चाहे कोई जाति का ब्यक्ति मरे उसे नहलाया जरुर जाता है दफनानें या जलाने के पहले / चाहे किसी जाती या धर्म का ब्यक्ति मरे , मरे हुए ब्यक्ति के साथ कुछ सुगन्धित चीजों को जरुर रखते हैं या जलाते हैं / हिंदू लोग चन्दन या धुप का प्रयोग करते हैं / यहाँ कुछ बातें बताई गयी जिसके बा

गीता संकेत भाग एक

गीता संकेत नाम से गीता के सूत्रों की एक श्रृंखला आज प्रारम्भ हो रही है , देखते हैं यह गीता मार्ग हमें कहाँ से कहाँ ले जाता है / गीता सूत्र – 8.5 अंत – काले च माम् एव स्मरन् मुक्त्वा कलेवरम् / यः प्रयाति सः मद्भावं याति नअस्ति तत्र संशयः // शाब्दित अर्थ --- यः अन्तकाले माम् स्मरन् मुक्त्वा कलेवरम् सः मद्भावं याति // अर्थात वह जो अंत समय आनें पर मात्र मुझे स्मरण करता है वह मेरे भाव को प्राप्त करता है // Whoever at the time of death gives up his body and departs keeping Me only in his mind alone , he touches Me , there is no doubt in it . गीता का यह सूत्र क्या इशारा दे रहा है ? क्या हरे राम हरे कृष्ण का जो जाप करता हुआ प्राण त्यागता है वह आवागमन से मुक्त हो जाता है ? वह जिसकी गर्दन कभीं नीचे न झुकी हो … .. वह जो अपना जीवन अहंकार की ऊर्जा से चलाया हो … . वह जिसके लिए काम ही जीवन का रस रहा हो … .. वह जो क्रोध , लोभ , ममता एवं भय में जीवन गुजारा हो … . वह यदि अंत समय में न चाहते हुए , मात्र मोक्ष प्राप्ति की कामना से …

गीता के एक सौ सोलह सूत्र एक कदम और

गीता सूत्र – 18.55 प्रभु का परा भक्त प्रभु का द्वार होता है // गीता सूत्र – 18.50 कर्म – योग में नैष्कर्म्य – सिद्धि ज्ञान योग की परानिष्ठा होती है // गीता सूत्र – 18.49 जब कर्म में आसक्ति की छाया न पड़े तब नैष ्कर्म्य – सिद्धि मिलती है // गीता सूत्र – 4.18 कर्म – योग की सिद्धि पर कर्म में अकर्म अकर्म में कर्म दिखनें लगता है // गीता सूत्र – 4.38 योग सिद्धि से ज्ञान मिलता है // गीता सूत्र – 13.3 क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है // देह क्षेत्र है और देह में जीवात्मा रूप में परमात्मा क्षेत्रज्ञ है // गीता - प्रसाद रूप में गीत के कुछ मोतियों को आप स्वीकार करें ----- प्रभु श्री कृष्ण तो आप के संग – संग हैं लेकिन ----- आप को यह देखना है कि क्या ---- आप भी अपनें दिल में प्रभु को रखते हैं // ==== ओम ======

ज्ञान और ज्ञानी

गीता सूत्र – 4.19 वह जिसके कर्म में काम , कामना एवं संकल्प की अनुपस्थिति होती है , ज्ञानी होता है / गीता सूत्र – 2.55 काम – कामना रहित स्थिर प्रज्ञ होता है / गीता सूत्र – 5.17 वह जो तन , मन एवं बुद्धि से प्रभु को समर्पित हो , ज्ञानी होता है / गीता सूत्र – 5.13 आसक्ति रहित योगी का आत्मा नौ द्वारों के देह में प्रसन्न रहता है / गीता सूत्र – 14.11 सात्त्विक गुण के प्रभाव में देह के सभीं नौ द्वार ज्ञान से प्रकाशित रहते हैं / गीता के कुछ अनमोल रत्न आप को आज दिए जा रहे हैं , आप इन सूत्रों के आधार पर बुद्धि - योग में प्रवेश कर सकते हैं // सूत्र – 14.11 को आप बार – बार देखें और फिर सूत्र – 5.13 पर सोचें / एक बात को आप अपनी स्मृति में रखें कि ---------- सात्विक गुण की पकड़ भी प्रभु राह में एक मजबूत रुकावट है // गीता की साधना में कोई पड़ाव नहीं , यात्रा कहते ही उसे हैं जो अंत हीं हो / गीता में रमें और इतना रमें कि गीता के हर पृष्ठ पर परम प्रकाश दिखनें लगे और आप … .. श्री कृष्ण से श्री कृष्ण में स्वयं को देखते हुए ------------ संसार में …

गीता के एक सौ सोलह सूत्र अगला भाग

गीता के एक सौ सोलह सूत्रों में अगले कुछ श्लोक सूत्र – 18.11 कर्म त्याग तो संभव नहीं लेकिन कर्म – योग साधना में कर्म – फल त्याग संभव है / कर्म में कर्म फल की चाह का न होना त्यागी बनाती है // In fact it is not possible to abstain from work because work is done by the three natural modes . However expectation of the better result of the work could be given up and it is not an action but it is the result of the practice of Karma – Yoga . सूत्र – 18.48 ऐसा कोई कर्म नहीं जो दोष रहित हो लेकिन जीवन निर्बाह के लिए सहज कर्मों को करते रहना चाहिए / All actions are clouded by defects but action suited to one,s nature should not be avoided . गीता सूत्र – 4.18 कर्म में अकर्म को देखना और अकर्म में कर्म को देखना मनुष्य को कर्म – योगी बनाता है // To see action in inaction , to see inaction in action is the awareness which makes one Yogin . गीता के तीन सूत्र आप को यहाँ दिए गए जो कर्म – योग की बुनियाद हैं और उम्मीद है ये सूत्र आप को गीता से जोड़ कर रखेंगे