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गीता बुद्धि योग श्रोत है

गीता हर एक हिंदू परिवार में मिलता है , लोग कभीं-कभी पढ़ते भी हैं लेकिन उनको क्या मिलता है?---यह सोच का बिषय है । गीता में परम श्री कृष्ण कहते हैं---योग सिद्धि पर ज्ञान मिलता है , ज्ञान के माध्यम से आत्मा का बोध होता है । योग-सिद्धि उसको मिलती है जो समत्वयोगी होता है अर्थात जिसके उपर गुणों के तत्वों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता जो भोग संसार में कमलवत होता है लेकिन अर्जुन को जो पूरी तरहसे मोह में डूबा है उसकों सबसे पहले आत्मा के सम्बन्ध में क्यों बताते हैं ? आत्मा अब्यक्त है , अशोच्य है और मन-बुद्धि के परे की अनुभूति है फ़िर अर्जुन जो तामस गुन के मुख्य तत्व मोह में डूबे हैं , आत्मा को कैसे समझ सकते है ? गीता के आखिरी अध्याय का पहला श्लोक अर्जुन के प्रश्न के रूप में है अर्थात गीता समाप्त होरहा है लेकिन अभी भी अर्जुन प्रश्न रहित नहीं हैं । अर्जुन के उपर यदि गीता का असर होता तो उनको प्रश्न रहित हो जाना था लेकिन ऐसा हुआ नही । गीता में गीता श्लोक 18.73 से पहले कहीं भी अर्जुन मोह रहित नहीं दीखते फ़िर कैसे एकाएक कहते हैं की मेरा अज्ञान- जनित मोह समाप्त होगया है , मैं अपनी स्मृति प्राप्त करली है और

कामना और गुण

कामना राजस गुण का तत्व है और राजस गुण परम-राह का सबसे मजबूत अवरोध है[ गीता-6।27] दो साधू नदी किनारे बैठेaataahcnuh थे उनमें से एक नें एक काला कम्बल अपनी तरफ़ आते देखा और ज्योंही कम्बल नजदीक आया उसनें उसे झटसे पकड़ लिया। दूसरा साधू सारी घटनाओं को देख रहा था। कुछ समय गुजर गया पर उसका साथी कम्बल को पकडे नदी में धुका रहा तब उसनें बोला भाई! जा पकड़ ही लिया है तो उसे बाहर क्यों नहीं खीचलेता क्यों नदीमें झुका पडा है? दोस्त बोला मैं क्या करू? यह तो हमें अपनी ओरखीच रहा है बात कुछ समझ के बाहर की दिख रही थी, वास्तव में वह कम्बल नहीं रीछ था। कामना कम्बल की तरह दिखती तो है लेकिन होती रीछ जैसी है , कामना कही से आती नही , यह बिषय - इन्द्रिय संयोग से उपजी आशक्ति ऊर्जा से उत्पन्न होती है और क्रोध इसका रूपांतरण है [गीता- 2।62-2।63 ] गीता गुण - समीकरण को जिसनें समझ लिया वह भोग तत्वों के सम्मोहन से बच सकता है और जब ऐसा संभव होता है तब समझो भाग्यशाली हो , तुम में परमात्मा -किरण पड़ चुकी है। गीता-सूत्र 14 . 10 को आप ठीक से समझो, सूत्र कहता है ----- मनुष्य में तीन गुण हर पल होते हैं , उनकी मात्राएँ अलग अलग

Prof. Einstein and Gita

Prof.Einstein says - When i read bhagvad gita and reflect about how God created this universe, everything else seems so superfluous. 20 वीं शताब्दी का महान वैज्ञानिक जब गीता के बारे में ऎसी बात कहता है तब हमें उन श्लोकों को देखनें की उत्सुकता अवश्य होनींचाहिए की वे श्लोक कौन से हैं? यदि आप के पास गीता हो तो आप से प्रार्थना है की आप उसको अपनें पास रख लें, ऐसा करनें से से आप को सहूलियत मिलेगी। गीता के निम्न श्लोक प्रो आइंस्टाइन को आकर्षित किए होंगे तो चलते हैं आगे इन श्लोकों में। श्लोक 2।28 जो कुछ आज है वह अज्ञात से आया है और अज्ञात में जा रहा है। श्लोक 7.4--7.6 , 13.5- 13.5 , 14.3-14.4 सभी भूतों की रचना अपरा प्रकृत के आठ तत्वों , चेतना , आत्मा- परमात्मा एवं गुणों से हुयी है। श्लोक 8.16--8.18 सभी लोक पुनरावर्ती हैं अर्थात आज हैं और कल नहीं रहेंगे और पुनः कहीं और बनते भी रहते हैं। सृष्टि की अवधी चार युगों की अवधी से हजार गुना अधिक होती है। सृष्टि के अंत पर सभी सूचनाएं अति शुक्ष्म ऊर्जा में बदल जाती हैं और जब पुनः ब्रह्मा का दिन प्रारम्भ होता है तब सभी सूचनाएं पुनः अपनें-अपनें पूर्व आक

कृष्ण जब राधा बने

राधा के ह्रदय की गहराई जाननें के लिए राधा बनें। राधा के मर्म को जाननें के लिए राधा बनें। लेकिन क्या राधा के मर्म को समझ पाये? कृष्ण का राधा बनाना और अर्ध नारेश्वर की कथा हजारों साल पुरानी है लेकिन क्या..... हर नर में नारी है और हर नारी में नर है का विज्ञान भारत में बन पाया? निरा कार कृष्ण सीमा रहित है और गोकुल के कृष्ण की अपनी सीमा है। सीमित को असीमित को पकडनें केलिए गहरे ध्यान से गुजरना पड़ता है। द्वापर का कृष्ण क्या-क्या लीला नहीं दिखाया जीनमें अनेक ज्ञान-विज्ञान की बातें छिपी हैं लेकिन हम भारतीय उन बातों को पकड़ नहीं पाये। C.G.JUNG जो एक जानें मानें मनो वैज्ञानिक हैं -कहते हैं की हर नर में नारी होती है और हर नारी में नर होता है और इस बात को लेकर पश्चिम में अंग परिवर्तन का विज्ञान पैदा हुआ , क्या आप जानते हैं की ज़ंग गीता-उपनिषद के प्रेमी थे तथा संस्कृत का उनको अच्छा ज्ञान भी था? गीता का कृष्ण एक सांख्य योगी है , शांख्य योगी एवं बैज्ञानिक में एक अन्तर है --वैज्ञानिक संदेह को पकड़ कर सत्य को पकडनें के लिए प्रयोगशाला बनाता है और संख्या योगी की प्रयोगशाला यह संसार है जहाँ वह एक द्रष्ट

मोह को समझो

मोह गीता का मुख्य बिषय है , अर्जुन के मोह को दूर करनें के लिए परम गीता-ज्ञान दिया तो आइये देखते हैं गीता में मोह क्या है? १- मोह , मन, मोहित और मोहन को जानों। २- जो है वह जानें न पाये का भय , मोह है। ३- मोह, भय और आलस्य तामस गुन के तत्त्व हैं । ४- हम मुट्ठी खोलना नहीं चाहते और बंद मुट्ठी में उसको लाना चाहते हैं जो मुट्ठी में नहीं है - यह कैसे सम्भव है ? हम बंद मुट्ठी को इस भय से खोलना नहीं चाहते की जो इसमें बंद है वह कहीं सरक न जाए और यही भय मोह है। तुलसी का राम चरित मानस आप पढ़ते होंगे, राजा दशरथ मोह में अपना शरीर त्यागा और गीता श्लोक 14.15 कहता है किऐसे ब्यक्ति को कीट,पतंग या पशु कि योनी मिलती है तो क्या श्री राम के पिता को आगे इन योनिओं में से कोई एक योनी मिली होगी?---उत्तर आप को खोजना है । मोह कि पहचान मोह कि पहचान को समझनें के लिए देखिये गीता श्लोक 1.27-1.30 तक को । अर्जुन कहते हैं ---हमारे शरीर में कम्पन हो रहा है , त्वचा जल रही है , गला सूख रहा है और मन भ्रमित हो रहा है। गीता का कृष्ण एक सांख्य - योगी है और ऐसा योगी समत्व योगी होता है जो भावों से प्रभावित नहीं होता । अर्जुन कि

स्वभाव क्या है ?

यहाँ हमें गीता के इन श्लोकों को देखना चाहिए ------ 2.45,3.27,3.33, 14.19,14.23,18.59,18.60 , 8.3 जब हम इन श्लोकों को अच्छी तरह से देखते हैं तब हमें गीता यह देता है .......... स्वभाव दो तरह का होता है; एक परिवर्तनशील स्वभाव है और दूसरा स्थाई । अस्थाई स्वभाव हमारे अंदर के गुन समीकरण से बनताहै , गुन-समीकरण हर पल बदलता रहता है । अस्थाई स्वभाव से कर्म होते हैं और ऐसे कर्म भोग कर्म होते हैं । भोग कर्मों में भोग-तत्वों के प्रति होश बनाना ही कर्म योग है । होश बन जानें के बाद भोग-कर्म योग कर्म में बदल जाते हैं और तब हमें-------- अपना मूल स्वभाव मिलता है जिसको गीता अध्यात्म कहता है [8.3 ] । संसार से अपनें केन्द्र - ब्रह्म तक पहुँचना तब संभव है जब हमको अपना मूल स्वभाव मिल जाता है । आज से हमें अपनें मूल स्वभाव को खोजना है वह भी गीता के माध्यम से । ====ॐ=====

गीता तत्त्व-विज्ञानं एक राह हैं

गीता तत्त्व विज्ञानं -राह रोमांचित चौराहों से गुजरती है ,आइये देखते हैं कुछ झलकियाँ । राग से वैराग काम से राम आसक्ति से समभाव साकार से निराकार वासना से प्यार मैं से तूं अंहकार से प्रीति अज्ञान-से ज्ञान भोग से योग भाव से सम भाव सम भाव से भावातीत विकार से निर्विकार ......... की यात्रा का नाम गीता तत्त्व विज्ञान है । =====ॐ=====