पतंजलि अष्टांगयोग के पहले अंग यम का तीसरा तत्त्व अस्तेय👇 👌अस्तेय का भाव है तन , मन और बुद्धि स्तर पर चोरी सम्बंधित भाव का निर्मूल हो जाना । 👉त् चोरी करना , चोरी करवाना , चोर के समर्थन के पक्ष में सोचने जैसे भाव का अंतःकरण से निर्मूल करानें का अभ्यास अस्तेय साधना है। 👉पतंजलि अपनें अष्टांगयीग के आठ अंगों में यम को पहला स्थान देते हैं । यम का अर्थ होता है अभ्यास करना । अष्टांगयोग का दूसरा अंग है नियम । नियमके 05 अंगों के पालन करनें का अभ्यास करना होता है । अस्तेय साधना के बाद ब्रह्मचर्य साधना और अपरिग्रह की साधना का स्थान है । 👌यम - नियम साधना की सिद्धि मिलने पर अष्टांगयोग के तीसरे अंग आसन की सिद्धि करनी होती है । 🐧परम सत्यको देखने की ऊर्जा प्राप्त करने की यात्रा का नाम है , अस्तेय । //ॐ //